________________ दिगम्बर-सम्प्रदाय एवं हरिवंशपुराण : आचार्य जिनसेन कृत "हरिवंशपुराण" दिगम्बर सम्प्रदाय के पुराण साहित्य में अपना मूर्धन्य स्थान रखता है। विवेचनात्मक दृष्टिकोण से इसका प्रमुख स्थान है परन्तु जैन संस्कृत पुराणों में समय की दृष्टि से इसका सरा स्थान है। पहला रविषेणाचार्य का "पद्मचरित" दूसरा जटासिंहनन्दि का "वरांगचरित्र" और तीसरा यह। आचार्य जिनसेन ने भी अपने ग्रन्थ में रविषेण के "पद्म-पुराण" का स्पष्ट उल्लेख किया है : कृतपद्मोदयोद्योता प्रत्यहं परिवर्तिता। मूर्तिः काव्यमयी लोके रवेरिव रवेः प्रियाः॥ 1/34 इसके अलावा "पार्वाभ्युदय" ग्रन्थ के कर्ता जिनसेन स्वामी का उल्लेख भी हारेवंशपुराण के प्रथम सर्ग में मिलता है, जिन्होंने महापुराण की रचना की। इस तथ्य से हरिवंशपुराण महापुराण से परवर्ती होना चाहिए। परन्तु वास्तव में हरिवंशपुराण में जिनसेन (प्रथम) के "पार्वाभ्युदय" ग्रन्थ का ही उल्लेख किया गया है, महापुराण की चर्चा कहीं पर भी नहीं है। ये दोनों कवि समकालीन थे, परन्तु हरिवंशपुराण की रचना के समय इस महापुराण की रचना नहीं हुई होगी, क्योंकि महापुराण जिनसेन (प्रथम) के जीवन की अन्तिम रचना है तथा वह भी उनके द्वारा पूर्ण न होने के कारण उनके पट्टशिष्य गुणभद्राचार्य ने उसे पूर्ण किया था। इसलिए हरिवंशपुराण-कार ने इस ग्रन्थ का उल्लेख नहीं किया होगा। हरिवंशपुराणकार जिनसेन, आदिपुराणकर्ता जिनसेन से भिन्न : हरिवंशपुराण-कर्ता जिनसेन एवं आदिपुराण के रचयिता जिनसेन का नाम-साम्य तथा समकालीन होने के कारण कई विद्वानों ने इन दोनों व्यक्तियों को एक ही समझ लिया है परन्तु कई विद्वानों ने इन दोनों कवियों को भिन्न-भिन्न स्वीकार किया है। इनका व्यक्तित्व, गुरुपरम्परा तथा इनकी कृतियाँ आदि का अवलोकन करने पर यह स्पष्ट हो जाता है कि दोनों अलग-अलग मुनि थे। नाम-साम्य के अलावा इनका कोई सम्बन्ध नहीं था। डॉ० प्रेमचन्द जैन ने इन दोनों कवियों का पार्थक्य निम्न बिन्दुओं के आधार पर भली-भाँति किया है। (1) दोनों के गुरु भिन्न-भिन्न थे। हरिवंशपुराण के कर्ता जिनसेन के गुरु का नाम कीर्तिषेप तथा दादा गुरु का नाम जयसेन था जबकि आदिपुराण के रचयिता जिनसेन स्वामी के गुरु का नाम वीरसेन तथा दादा गुरु का नाम आर्यनंदि था। इस प्रकार दोनों मनीषियों की गुरु-परम्परा अलग-अलग थी। (2) हरिवंशपुराणकार जिनसेनाचार्य "पुन्नाटसंघ" के आचार्य थे तथा आदिपुराण के कर्ता जिनसेन “सेनसंघ" या "पंचस्तूपान्वय" के आचार्य थे।