SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 63
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तथा अभिव्यंजना दोनों की दृष्टि से हिन्दी के भक्तिकालीन कवियों में उच्चस्थान प्राप्त करने के अधिकारी हैं। (4) चन्द्र गोपाल :___ये रामरायजी के अनुज एवं उनसे बारह वर्ष छोटे थे। रामराय के वृन्दावन में बसने के बाद ये भी उनके सान्निध्य में आये। इन्होंने चैतन्य मार्ग का अवलम्बन लिया। इनकी रचनाएँ संस्कृत एवं ब्रजभाषा दोनों में मिलती है। संस्कृत में श्री राधामाधवमाला, गायत्रीमाला, श्रीराधामाधवाष्टक तथा ब्रजभाषा में चनु-चौरासी, अष्टयाम, सेवासुधा, गौरांग, अष्टायनऋतुविहार तथा राधा-विहार आदि कृतियाँ प्रसिद्ध हैं। इन ग्रन्थों में इन्होंने श्री राधा-कृष्ण की माधुर्य लीला का सुमधुर वर्णन किया है। (5) भगवानदास : "दो सौ वैष्णव की वार्ता" के अनुसार ये आगरा के सूबेदार के दीवान थे तथा चैतन्य सम्प्रदाय के किन्हीं गोविन्ददेव के सेवक थे। इनके कुछ पदों का संग्रह रामरायजी के पदों के साथ मिलता है। इन्होंने अपनी रचनाओं को श्रद्धापूर्वक गुरु के नाम कर दिया है। इनके पदों में जो भगवान् हित रामराय की छाप है, उससे उपर्युक्त मंतव्य स्पष्ट हो जाता है। इनके लगभग 100 पद उपलब्ध होते हैं। इनका काव्य उत्कृष्ट कोटि का है . परन्तु कहीं-कहीं शिथिलता भी दृष्टिगोचर होती है। (6) माधवदास माधुरी : ये भी चैतन्य सम्प्रदाय के भक्त कवि थे। इन्होंने अपने ग्रन्थों में महाप्रभु चैतन्य की वंदना की है। इनकी रचनाओं में केलिमाधुरी, बंसीवर माधुरी, वृन्दावन माधुरी प्रसिद्ध है। इनका रचना काल 1618 से 1656 ई० तक माना जाता है। इनकी भाषा लालित्यपूर्ण, सहज एवं सरल है। उन्होंने अपनी कृतियों में दोहा, चौपाई, कवित्त, सवैया, सोरठा इत्यादि विविध छन्दों का सुन्दर प्रयोग किया है। (7) भगवत मुदित :.. ये भक्तवर माधवमुदित के पुत्र एवं आगरा के दीवान के सूबेदार थे। श्री ध्रुवदास के साक्ष्य के अनुसार इनका कवि होना सिद्ध है, परन्तु इनकी कोई रचना नहीं मिलती है। "वृन्दावन शतक" में इन्होंने स्वयं को गौड़ीय सम्प्रदाय के हरिदास का शिष्य बताया है। इनकी एक रचना "रसिक-अनन्यमाल" भी मिलती है। कई विद्वान् “हित-चरित्र" तथा "सेवक-चरित्र" भी इनकी रचनाएँ मानते हैं परन्तु हिन्दी साहित्य के अधिकांश इतिहासकारों ने ये ग्रन्थ इनके द्वारा लिखे नहीं माने हैं। इनकी भाषा ब्रज है तथा काव्यकला साधारण कोटि की है। उपर्युक्त प्रकार से गौड़ीय सम्प्रदाय के ये प्रसिद्ध कवि थे। इनके अलावा भी कई कवियों, भक्तों के नाम मिलते हैं परन्तु उन सब का यहाँ वर्णन करना अनुपयुक्त होगा।
SR No.004299
Book TitleJinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayram Vaishnav
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2003
Total Pages412
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy