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________________ अपने प्रसिद्ध ग्रन्थ "गाथा-सप्तशती" में किया है। इसमें कृष्ण राधा और गोपियों के प्रेम सम्बन्धी अनेक कथाएँ हैं, जिसमें श्रृंगारिक वर्णन मिलता है। संस्कृत कवि नारायण भट्ट ने अपने "वेणी-संहार" नाटक के नान्दी श्लोक में अपनी प्रार्थना में राधा-कृष्ण लीला का सुन्दर वर्णन किया है। इसमें श्री कृष्ण चतुर राजनीतिज्ञ के रूप में निरूपित हैं। मारवाड़, भीनमाल में जन्मे संस्कृत के महाकवि माघ ने "शिशुपालवध" नामक महाकाव्य लिखा जिसकी मूल कथा महाभारत से ली गई है। इसमें श्री कृष्ण का विशद वर्णन है। अलंकार ग्रन्थ "ध्वन्यावलोक" के रचयिता आचार्य आनन्दवर्धन ने भी कुछ श्लोकों में श्री राधाकृष्ण के मधुर प्रेम को मनोरम रूप से निरूपित किया है। आचार्य क्षेमेन्द्र ने भी अपनी प्रसिद्ध कृति 'दशावरा चरित्र" में श्री कृष्ण के भक्त-वत्सल तथा पराक्रमी स्वरूप का उल्लेख किया है। इनका समय ११वीं शताब्दी है। "कवि लीलांकुश" ने अपने ग्रन्थ "कृष्ण-कर्णामृत स्तोत्र" में कृष्ण भक्ति के साथ माधुर्य और आत्म समर्पण का भाव निरूपित किया है। इस ग्रन्थ को चैतन्य महाप्रभु दक्षिण से ले आये थे। इसमें नागलीला, दागलीला तथा कृष्ण विषयक लीलाओं का वर्णन है। __इसके उपरान्त, बारहवीं शताब्दी के प्रसिद्ध कवि जयदेव ने अपनी प्रासद्ध कृति गीत-गोविन्द में राधा कृष्ण की श्रृंगारिक लीलाओं का सुन्दर वर्णन किया है। इस ग्रन्थ का परवर्ती साहित्य पर भी पर्याप्त प्रभाव पड़ा है। कहीं-कहीं यह वर्णन अश्लीलता को भी छू जाता है। हिन्दी के मध्ययुगीन भक्तिकालीन एवं रीतिकालीन कृष्ण चरित्र पर इसका प्रभाव स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है। भक्ति के आलम्बन श्री कृष्ण स्वयं राधा आर गोपियों के साथ श्रृंगार रस के प्रमुख आलम्बन बन गये हैं। "गीत-गोविन्द" में राधा कृष्ण का मधुर मिलन, प्रेमक्रीड़ा, . मादक प्रेमानुभुति के चित्र सजीव हो गये हैं। जयदेव के समकालीन "उमापति धर" ने भी श्री कृष्ण विषयक पद लिखे हैं। उनके कृष्ण रूक्मिणी के साथ द्वारका में विहार कर रहे हैं परन्तु उन्हें गोप-बालाओं की मधुर याद है। इसी काल में "लक्ष्मणसेन" ने भी "वेणुनाद" सम्बन्धी पद लिखे हैं। केशवसेन ने भी अपने पदों में कृष्ण चरित्र का वर्णन किया है परन्तु उन पर जयदेव का स्पष्ट प्रभाव दिखाई देता है। "शतानन्द" कवि ने भी अपने पदों में श्री कृष्ण-लीला का वर्णन किया है। गोवर्धन धारण के समय राधा द्वारा सहायता की आकांक्षा एक पद में वर्णित है। "बलदेव उपाध्याय" के संस्कृत साहित्य के इतिहास के अनुसार वैद्य-जीवन के कर्ता लोलिम्बराज का हरिविलास, राज चूडामणि * दीक्षित का "रुक्मिणी कल्याण" कृष्णदास कविराज का "गोविन्द लीलामृत" तथा अमरचन्द सूरि का "बाल-महाभारत" आदि भी कृष्ण काव्य के अन्तर्गत आते हैं। - उपर्युक्त प्रकार से यह स्पष्ट होता है कि संस्कृत साहित्य में जो श्री कृष्ण चरित्र का वर्णन मिलता है, उसमें अलौकिकता को महत्त्व न देकर गोपीजन-वल्लभ और राधा - -
SR No.004299
Book TitleJinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayram Vaishnav
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2003
Total Pages412
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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