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________________ डॉ० भंडारकर आदि विद्वानों की इस प्रकार की मान्यता है कि बाल कृष्ण की कथा वास्तव में सीरिया से चलकर भारत में आई। घुमक्कड़ म्लेच्छ आभीर जाति के बालदेवता की कथा है। हरिवंशपुराण में आभीरों के बालदेवता श्री कृष्ण की प्राचीनता का उल्लेख मिलता है। उनका मत है कि आभीर लोग संभवतः बालदेवती की जन्म-कथा पूजा भारत के बीच ले आए और कुछ कथाएँ उन्होंने भारत में आने के बाद जोड़ दी। वे लिखते हैं कि 'संभव है कि वे अपने साथ क्राइस्ट नाम भी लाए हो तथा संभवतः यही नाम वासुदेव कृष्ण के साथ भारत वर्ष में बालदेवता के एकीकरण का कारण हुआ हो।'६४ डॉ० हजारीप्रसाद द्विवेदी ने इस मत का जोरदार खण्डन किया है। भंडारकर का यह अनुमान नि:संदेह असंगत है। जिन्होंने भाषा-शास्त्र का कुछ भी परिचय प्राप्त किया होगा, वे आसानी से यह असंगति समझ सकते हैं। भण्डारकर जैसे पण्डित ने कैसे इस प्रकार का अनुमान किया होगा, यह सोचकर आश्चर्य होता है। पर, और भी आश्चर्य जनक है—इस पर यूरोपीय पण्डित का आस्फालन। स्वर्गीय तिलक ने एक जगह "वेन" शब्द का सम्बन्ध ग्रीक के "वेनस" से दिखाकर यह सिद्ध करना चाहा कि वेदों ने शुक्र की चर्चा करनी चाही है। इस पर मेक्डोनाल्ड तथा कीथ ने वैदिक इण्डेक्स में कई जगह इस अनुमान को अतिसंभव बताया है। ये ही यूरोपियन विद्वान् भंडारकर के अनुसार अनुमान को इतना महत्त्व देते हैं। तिलक की इस बात का समर्थन होते हुए भी हम यह पूछना चाहते हैं कि तिलक का अनुमान क्या इससे अधिक है? यूरोपियन पण्डितों से अधिक कोई नहीं जानता कि क्राइस्ट का मूल उच्चारण वही नहीं जो आज प्रचलित है।५।। इसके उपरान्त भी ईसा का नाम यीशु या जीसस है। क्राइस्ट तो एक उपाधि है, जिसका अर्थ मसीहा होता है। ईसाई लोग यीशु को मसीहा ही मानकर उन्हें लोकरक्षक के रूप में याद करते हैं। इसी तरह से "क्राइस्ट इन आर्ट" का तात्पर्य लिया जाता है कि लोक-रक्षण का प्रतिनिधित्व करने वाली कला। निष्कर्ष के तौर पर क्राइस्ट, क्रिस्टो और कृष्ण की साम्यता निराधार, असंगत और पूर्ण रूप से गलत सिद्ध हो जाती है। दोनों नामों में कोई सामंजस्य नहीं है। आभीरों के बाल कृष्ण : _ डॉ. भंडारकर आदि कई विद्वानों की मान्यतानुसार बाल कृष्ण की कथा वास्तव में आभीर जाति के बालदेवता की कथा है। लेकिन कृष्ण का आभीर जाति से सम्बद्ध होने तथा आभीरों का ईसा पूर्व भारत में बस जाना आदि बातें असंगत प्रतीत होती है। आभीरों का ईसा पूर्व यहाँ आना असम्भव नहीं है परन्तु आभीर इसी देश की भी जाति हो सकती है। इनके अपने बालदेवता भी हो सकते हैं। वास्तव में आभीर शब्द द्रविड़ भाषा का है जिसका अर्थ होता है "गोपाल"। परन्तु यह भी कहा गया है कि
SR No.004299
Book TitleJinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayram Vaishnav
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2003
Total Pages412
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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