SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 394
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तथा कान्त भक्ति का जो सामंजस्य इस साहित्य सागर में एकत्रित हुआ है, वह अन्यत्र . नहीं है। महाकवि सूर की कृति सूरसागर के साहित्यिक पहलुओं पर हमनें पिछले परिच्छेदों. में प्रकाश डाला है। इसी से सूर हिन्दी साहित्य के सूर्य माने जाते हैं "सूर सूर तुलसी ससी उड़गन केशवदास" वाली कहावत से हिन्दी प्रेमी भला कौन अपरिचित होगा। सूरसागर की सरलता, मधुरता तथा काल्पनिक भावात्मक उद्रेक की समानता में हिन्दी ही क्या, अन्य भाषाओं का भी साहित्य कठिनता से आयेगा। सूरसागर में अनुभूति है, कल्पना की उड़ान है, भावना की गहराई है, भक्ति की मान्यता है, मधुरता है तथा सौन्दर्य सृष्टि है। इसमें जो चित्र अंकित किये गये हैं, वे आँखों के सामने एक बार आने पर पाठकों को वशीभूत कर लेते हैं। पाठक सर्वदा के लिए उनमें उलझकर भक्ति की धारा में बह निकलता है। सूर ने अपना वर्ण्य विषय गीतात्मक शैली से प्रस्तुत किया है। भाव के संदर्भ में सूरसागर गीतात्मक विराटकाव्य बन गया है। सूरसागर के गीतों में प्रबन्ध. सूत्र हैं, संवाद भी हैं। चित्र भी हैं तो वर्णन भी है। सूरसागर के गीतिकाव्य में वह सब कुछ है, जो गीतिकाव्य के चरमोत्कर्ष के लिए आवश्यक है। सूर की रस योजना बड़ी ही उत्कृष्ट है। इसमें निरूपित वात्सल्य एवं शृंगार संभोग एवं विप्रलम्भ रस की कोई सानी नहीं। वात्सल्य व विरह वर्णन में तो सूरसागर अद्वितीय कृति है। इसमें लोकमानस की सुन्दर अभिव्यंजना है। इसके अलावा भी साहित्य के सभी रसों का कवि ने मनोरम निरूपण किया है। ___ प्रकृति काव्य की उत्कृष्टता की कसौटी होती है। सूर के भावात्मक हृदय ने प्रकृति के बहुविध रूपों का सुन्दर निरूपण किया है। ब्रजभूमि के प्राकृतिक सौन्दर्य का वर्णन कर कवि ने अपनी कृति, को सजीव एवं सप्राण बना दिया है। गोचारण प्रसंग में प्रकृति का जो सहज रूप, उग्र रूप तथा सूक्ष्म रूप गतिशीलता के साथ उसके असीम वैभव का चित्रण हुआ है, वह देखते ही बनता है। सूरसागर एक ऐसा रस का सागर है जिसकी प्रत्येक मणियें लोक जीवन के विविध परिदृश्य प्रतिबिम्बित हो गये हैं। लोक जीवन के विभिन्न प्रवृत्तियों की जो झलक सूरसागर में मिलती है, वैसी झलक स्पष्टता व यथार्थता के साथ किसी अन्य काव्य में नहीं। लोक संस्कारों में जातकर्म, छठी, नामकरण, अन्नप्राशन, वर्षगांठ, यज्ञोपवीत, विवाह तथा अन्त्येष्टि तक के प्रायः सभी संस्कार इसमें वर्णित हैं। विभिन्न उत्सवों, त्यौहारों का भी कवि ने बड़ी सूक्ष्मता के साथ चित्रण किया है। उत्सवों में दीपावली, श्रावणी, होली इत्यादि वर्णन बड़े ही मनोरम बन गये हैं। इतना ही नहीं, सूरसागर में स्थान-स्थान पर अनेक धार्मिक, सामाजिक विश्वासों का उल्लेख मिलता है जो तत्कालीन समाज में व्याप्त श्रद्धा के परिचायक हैं। महाकवि सूर
SR No.004299
Book TitleJinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayram Vaishnav
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2003
Total Pages412
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy