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________________ धारण में मग्न होने से नारद के आगमन को न जान सकी। फलस्वरूप नारद क्रोधित हो वहाँ से निकल गये एवं द्रौपदी को दु:ख देने का सोचने लगे।५६ नारद द्रौपदी के मानभंग का दृढ़ निश्चय कर अंग देश की नगरी अमरकंकापुरी में गये। वहाँ उन्होंने स्त्रीलम्पट पद्मनाभ राजा को देखा। राजा पद्मनाभ ने नारद को आत्मीय जानकर अपना अन्तःपुर दिखाया तथा पूछा कि, ऐसा स्त्रियों का रूप कहीं अन्यत्र देखा है, तदनन्तर नारद ने द्रौपदी के रूप-लावण्य की प्रशंसा की और द्रौपदी का पता बताकर वे चले आये।५७ पद्मनाभ ने द्रौपदी को लाने के लिए पाताल लोक के संगमक नामक देव को भेजा। तदनन्तर वह देव सोती हुई द्रौपदी को पद्मनाभ की नगरी में उठा लाया। राजा पद्मनाभ ने देवांगना के समान द्रौपदी को देखा। यद्यपि द्रौपदी जाग उठी थी एवं निद्रा रहित हो गई थी; तथापि-"यह स्वप्न है" इस प्रकार शंका करती हुई बार-बार सो रही थी। नेत्रों को बन्द करने वाली द्रौपदी का अभिप्राय जानकर राजा पद्मनाभ धीरे से उसके पास आया तथा कहने लगा कि, हे विशाललोचने! यह स्वप्न नहीं है, यह धातकी खंड है एवं मैं राजा पद्मनाभ हूँ। नारद ने मुझे तुम्हारे रूप के बारे में बताया था तथा मेरे आधारित देव तुम्हें यहाँ लाया है।८ ___ यह वचन सुन महासती द्रौपदी सोचने लगी-अहो ! अत्यन्त दारुण दुःख आ पड़ा है। जब तक अर्जुन के दर्शन नहीं होंगे तब तक अन्न-जल एवं शृंगारादि का त्याग रहेगा। ऐसा कहकर उसने अर्जुन के द्वारा छोड़ने योग्य वेणी को बाँध लिया। __ तदनन्तर वह पद्मनाभ को कहने लगी कि, बलदेव तथा कृष्ण नारायण मेरे भाई हैं, अर्जुन जैसा धनुर्धारी मेरा पति है। पति के बड़े भाई महावीर भीम अतिशय वीर हैं और पति के छोटे भाई सहदेव एवं नकुल यमराज के समान हैं। जल व स्थल मार्ग से उन्हें कोई नहीं रोक सकता। इसलिए हे राजन्! यदि तू अपना कल्याण चाहता है तो सर्पिणी के समान मुझे शीघ्र ही वापस भेज दे। परन्तु पद्मनाभ ने अहंकार वश द्रौपदी का कहना नहीं माना।६० तब द्रौपदी ने अपनी बुद्धि से एक उपाय सोचकर कहने लगी कि, हे राजन् ! यदि मेरे आत्मीय जन एक मास के भीतर यहाँ नहीं आते हैं तो तुम्हारी जो इच्छा हो वह करना। पद्मनाभ ने उसकी बात मान ली। वह अपनी स्त्रियों के साथ उसे अनुकूल करता और लुभाता परन्तु वह अपने निश्चय पर दृढ़ रही। ___इधर जब द्रौपदी अकस्मात अदृश्य हो गई, तब पाँचों पाण्डव किंकर्तव्यविमूढ़ हो अत्यन्त व्याकुल हो गये। जब वे स्वयं को निरुपाय महसूस करने लगे, तब उन्होंने श्री कृष्ण को यह समाचार कहा। यह सुन श्री कृष्ण सहित सभी यादव अत्यन्त दुःखी हुए। उन्होंने समस्त भरत क्षेत्र में द्रौपदी की खोज की परन्तु वह नहीं मिली, तब उन्होंने -
SR No.004299
Book TitleJinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayram Vaishnav
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2003
Total Pages412
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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