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________________ कंस जरासंध का दामाद था। जब श्री कृष्ण ने कंस का वध किया तो उसके पश्चात् श्री कृष्ण व पांडव गण राजगृह के अधिपति महान् शक्तिशाली सम्राट् जरासंध के कोप भाजन बने। जरासंध के लगातार आक्रमणों से प्रताड़ित होकर यादवों ने मथुरा प्रदेश छोड़कर सुदूर पश्चिम में द्वारिका में नये राज्य की स्थापना की तथा दक्षिण भरत खण्ड में अपने प्रभुत्व व प्रभाव का विस्तार किया। श्री कृष्ण की शक्ति व यादवों के माहात्म्य की बात जब जरासंध को ज्ञात हुई तो वह अत्यन्त कुपित हुआ। यादवानां च माहात्म्यं श्रुत्वा राजगृहाधिपः। वणिजः तार्किकेभ्यश्च जातः कोपारुणेक्षणः॥२६ उसने अपने नेत्रों को लाल करते हुए मन्त्रियों से कहा कि, समुद्र में बढ़ने वाली तरंगों के समान भंगुर शत्रु आज तक उपेक्षित कैसे रहे / गुप्तचर रूपी नेत्रों से युक्त राजा के मन्त्री ही निर्मल चक्षु है, फिर वे सामने खड़े रहकर स्वामी को तथा अपने आपको धोखा देते रहे। यदि महान् ऐश्वर्य में मत रहने वाले मैंने उन शत्रुओं को नहीं देखा तो आप लोगों ने उन्हें क्यों नहीं देखा? यदि शत्रु उत्पन्न होते ही महान् प्रयत्न पूर्वक नष्ट नहीं किये तो वे कोप को प्राप्त हुई बीमारियों की भाँति दुःख देते हैं। ये दुष्ट यादव मेरे जामाता तथा भाई अपराजित को मारकर समुद्र की शरण में प्रविष्ट हुए हैं। ... तदुपरान्त जरासंध ने कृष्ण व यादवों को नष्ट करने के अपनी सैनिक तैयारियाँ प्रारम्भ कर दी तथा दूत भेजकर यादवों को आधिपत्य स्वीकार कर लेने का संदेश भेजा सापराधतया यूयं यद्यप्युद्भूतभीतयः। दुर्गं श्रितास्तथाप्यस्मन्नभयं नमतैत्य माम्॥२७ अपराधी होने के कारण तुमने मुझ से भयभीत होकर दुर्ग का आश्रय लिया है तथापि तुम लोग मुझे आकर नमस्कार करो तो तुम्हें मुझसे भयभीत होने का कोई कारण नहीं है। दूत की बात सुनकर श्री कृष्ण कुपित हो उठे। उन्होंने उससे कहा कि, सेना के साथ तुम्हारे राजा का युद्ध के लिए सत्कार है। हम संग्राम के लिए उत्कण्ठित हैं। तदनन्तर दोनों सेनाएँ आमने-सामने हो गई। युद्ध प्रारम्भ हो गया। जरासंध द्वारा रचित अनेक चक्रव्यूहों को श्री कृष्ण, बलराम व नेमिनाथ ने भेदन किया। जरासंध को अपनी सेना की पराजय ज्ञात हो गई। उसने जान लिया कि मेरा मरण-काल आ चुका है परन्तु फिर भी कृष्ण से बोला कि, हे गोप! चक्र न चला कर व्यर्थ समय की उपेक्षा क्यों कर रहा है?२८ . जरासंध के इस प्रकार कहने पर स्वभाव से विनयी कृष्ण ने उससे कहा कि, मैं चक्रवर्ती उत्पन्न हो चुका हूँ इसलिए आज से मेरे शासन में रहिए। यद्यपि यह स्पष्ट है
SR No.004299
Book TitleJinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayram Vaishnav
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2003
Total Pages412
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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