________________ शिशुपाल द्वारा अपमान किये जाने पर भी वे शिष्टता और सभ्यता वश चुप रहते हैं, जो उनकी महत्ता और अनुशासनप्रियता का द्योतक है। महाभारतकार महर्षि वेद व्यास ने श्री कृष्ण भगवत्-तत्त्व का निरूपण किया है परन्तु फिर भी कृष्ण के मानव रूप के दर्शन यत्र-तत्र हो जाते हैं। इस प्रकार महाभारत के श्री कृष्ण के सम्पूर्ण व्यक्तित्व का विश्लेषण करने पर यह स्पष्ट होता है कि वे भक्तिकालीन अनुराग के भाव-भीने आलम्बन न होकर श्री कृष्ण में क्षात्र धर्म का तेज, पराक्रम और शक्ति ही अधिक प्रबल है। क्षत्रिय योद्धा सास्वती द्वारा पांचरात्र धर्म का प्रचार हुआ था, इससे श्री कृष्ण में भी इन्हीं गुणों का आना अनिवार्य हो गया था। इसी से उनका यह व्यक्तित्व पौराणिक युग में अवतार का प्रतीक बन गया था। मध्यकालीन भक्त कवियों ने भी कृष्ण के इसी स्वरूप को अपनी भक्ति का आलम्बन बनाया था। पुराणों में श्री कृष्ण :____ महाभारत में जहाँ श्री कृष्ण को महामानव के साथ देवता एवं अलौकिक शक्तियों के प्रयोक्ता परब्रह्म के रूप में निरूपित किया है परन्तु वहीं पुराणों में श्री कृष्ण को मुख्य रूप से ब्रह्म रूप में प्रतिष्ठित करने का प्रयास किया गया है। श्री कृष्ण की साहित्यिक अभिव्यक्ति हमारे ग्रन्थों का मुख्य उपादान रहा है। आदिकाल से ही किसी न किसी रूप में श्री कृष्ण की अभिव्यक्ति मिलती है। वैदिक ग्रन्थों में वेद, उपनिषद्, आरण्यक आदि से लेकर महाभारत तक में श्री कृष्ण के व्यक्तित्व का क्रमिक विकास दृष्टिगोचर होता है। वे विष्णु, उपेन्द्र, आदित्य, नारायण, वासुदेव, जनार्दन और श्री कृष्ण का रूप धारण करते दिख पड़ते हैं। महाभारत में इन सभी नामों के समन्वय की चेष्टा आरम्भ हो गई थी। पुराणों का प्रमुख उद्देश्य उनकी महत्ता के वर्णन के साथ उन पर ईश्वरत्व का आरोप भी था। एक प्रमुख उपास्य देव के रूप में उनकी प्रतिष्ठा होने लगी और यही पौराणिक कृष्ण बाद के साहित्यिक अभिव्यक्ति के प्रमुख आलम्बन बन गये। उनके स्वरूप का जो हृदयाकर्षक वर्णन किया गया है, वह जन-जन के मानव को प्रफुल्लित कर देने में पूर्ण समर्थ सिद्ध हुआ है। . . पौराणिक साहित्य में श्री कृष्ण का वर्णन कई पुराणों में मिलता है। श्रीमद् भागवत, हरिवंश, ब्रह्म-वैवर्त, विष्णु, ब्रह्म, पद्म, वायु, वामन, कूर्म, गरुड, अग्नि, ब्रह्माण्ड, बृहन्नारदीय आदि पुराणों में श्री कृष्ण की कथा है। इनमें हरिवंशपुराण, ब्रह्मवैवर्त, श्रीमद्भागवत तथा विष्णुपुराण में श्री कृष्ण को सर्वोपरि देवता के रूप में प्रस्थापित किया गया है। इनमें विष्णु के अवतारों में श्री कृष्ण को पूर्णावतार मानकर स्तुति की गई है। भागवत में ऋषि, मनु, देवता, मनुपुत्र और प्रजापति को विष्णु का अंश बताकर कृष्ण को सम्पूर्ण लीलाओं से युक्त भगवान् कहा गया है।६ श्री कृष्ण परब्रह्म के अवतार, वे ही सृष्टि के कर्ता, पालक और संहारक कहे गये हैं। -