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________________ समुद्रविजय के पुत्र अरिष्टनेमि ही जैनों के बाइसवें तीर्थंकर के रूप में प्रसिद्ध हुए। परन्तु आयु में ये श्री कृष्ण से छोटे थे। पौराणिक परम्परा के अनुसार जिनसेनाचार्य ने इस वंश का विस्तृत वर्णन किया है। श्री कृष्ण के चचेरे भाई अरिष्टनेमि राजा अन्धक वृष्णि के दस पुत्र थे जिसमें शौर्यपुर का सम्राट समुद्रविजय सबसे बड़ा था। उनकी रानी का नाम शिवा देवी था। वैशाख शुक्ला त्रयोदशी को चित्रा नक्षत्र में रात्रि की शुभ बेला में शिवा देवी ने पुत्ररत्न (अरिष्टनेमि) को जन्म दिया। ततः कृतसुसंगमे निशि निशाकरे चित्रया प्रशस्तसमवस्थिते ग्रहगणे समस्ते शुभे। असूत तनयं शिवा शिवदशुद्धवैशाखज त्रयोदशतिथौ जगजयनकारिणं हारिणम्॥ इस भाग्यशाली पुत्र के पुण्य प्रभाव से देव देवेन्द्रों ने उसका जन्म-महोत्सव मनाया। बचपन से ही अरिष्टनेमि सुन्दर लक्षणों एवं उत्तम स्वरों से युक्त थे। वे एक हजार आठ शुभ लक्षणों से युक्त थे। गौतम गोत्री एवं शरीर से श्याम कांति वाले थे। उनकी मुखाकृति मनोहर थी तथा उनमें अलौकिक बल था। जब श्री कृष्ण एवं जरासंध के बीच निर्णायक युद्ध हुआ था, उस समय नेमिनाथ ने अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की थी। जब दोनों ओर से सेनाएँ अपनी-अपनी व्यूह बनाकर युद्ध के लिए तत्पर खड़ी थी, उस समय कुबेर के सिंहविद्या रथ पर बलभद्र, गारुड़रथ पर श्री कृष्ण एवं इन्द्र के भोज रथ पर नेमिनाथ सवार हुए। उनके रथ अस्त्रशस्त्रों से परिपूर्ण थे। यादवों की सेना में राजाओं ने अरिष्टनेमि को अपना सेनापति बनाकर उसे अभिषिक्त किया। उधर राजा जरासंध ने हर्षपूर्वक महाशक्तिशाली राजा हिरण्यनाभ को सेनापति के पद पर नियुक्त किया। दोनों ओर से रणभेरियाँ बजने लगी। दोनों ओर से योद्धा एक-दूसरे को ललकार-ललकार कर यथायोग्य युद्ध करने लगे। शत्रु सना को प्रबल और अपनी सेना को नष्ट होती देख बैल, हाथी तथा वानर की ध्वजा धारण करने वाले नेमिनाथ, अर्जुन और अनावृष्टि कृष्ण का अभिप्नाय जानकर स्वयं युद्ध करने की तैयारी करने लगे तथा उन्होंने जरासंध के चक्रव्यूह को भेजने का निश्चय किया। नेमिनाथ ने शत्रुओं के हृदय में भ्रम उत्पन्न करने के लिए इन्द्र प्रदत्त शाक शंख को बजाया, अर्जुन ने देवदत्त शंख और अनावृष्टि ने बलाहक नामक शंख बजाया। शंख नाद होते ही उसकी सेना में महान् उत्साह बढ़ गया एवं शत्रु सेना में महाभय छा गया। .. - % D
SR No.004299
Book TitleJinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayram Vaishnav
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2003
Total Pages412
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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