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________________ हिमगिरि से वसुगिरि, उससे गिरि, तदनन्तर सुमित्र आदि प्रतापशाली सम्राट् हुए। इसी कुल में आगे चलकर सुव्रत, वसु, वृहद्ध्वज, सुबाहु, दीर्घबाहु, वज्रबाहु, लब्धाभिमान, भानु, यदु, सुभानु, भीम तथा यदु नाम के राजा हुए। राजा यदु ही यादव वंश की उत्पत्ति के कारण थे, उन्होंने अपने प्रताप से समस्त पृथ्वी पर अपना राज्य फैला दिया था। उदियाय यदुस्तत्र हरिवंशोदयाचले। - यादवप्रभवो व्यापी भूमौ भूपविभाकरः॥ 18/6 तदन्तर इसी कुल में यदु से नरपति एवं नरपति के शूर और सुवीर दो पुत्र हुए। अत्यन्त वीर शूर ने अपने भाई सुवीर को मथुरा के राज्य पर अधिष्ठित किया एवं स्वयं कुशद्य देश में एक उत्तम शौर्यपुर नाम का नगर बसाया। शूर से अन्धक वृष्णि एवं सुवीर से भोजक वृष्णि आदि अत्यन्त वीर उत्पन्न हुए। अन्धक वृष्णि के दस पुत्र हुए जिनके नाम इस प्रकार से हैं-१. समुद्रविजय 2. अक्षोभ्य 3. स्तिमितसागर 4. हिमवान 5. विजय 6. अचल 7. धरण 8. पूरण 9. अभिचन्द एवं 10. वसुदेव।। इसके अलावा उनके कुन्ती एवं माद्री नाम की दो कन्याएँ थीं, जो अतिशय मान्य थीं। राजा भोजक वृष्णि के उग्रसेन, महासेन तथा देवसेन नाम के तीन पुत्र हुए। अन्धक वृष्णि के सबसे बड़े पुत्र समुद्रविजय के पुत्र अरिष्टनेमि थे तथा सबसे छोटे पुत्र वसुदेव के श्री कृष्ण पुत्र थे। इस प्रकार से श्री कृष्ण अरिष्टनेमि के न केवल समकालीन थे वरन् उनके चचेरे भाई थे। अरिष्टनेमि तथा श्री कृष्ण का पारिवारिक वंश-वृक्ष हरिवंशपुराण के अनुसार संक्षेप में निम्न प्रकार से है आर्य (इन्हीं से हरिवंश) यदु (यादव वंश) नरपति अन्धक वृष्णि भोजक वृष्णि उग्रसेन महासेन देवसेन समुद्रविजय अक्षोभ स्तिमित सागर हिमवान अचल धरण पूरण अभिचन्द वसुदेव अरिष्टनेमि श्री कृष्ण
SR No.004299
Book TitleJinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayram Vaishnav
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2003
Total Pages412
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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