________________ 111. हरिवंशपुराण सर्ग 59/13-14 - पृ० 489 112. सूरसागर पद सं० 1357 - पृ० 517 113. सूरसागर पद सं० 362 - पृ० 276 114. एक शब्द बहुबारजहंपरै रुचि अर्थ। / पुनरुक्ति परकाशगुनबरैन बुद्धिसमर्थ // काव्यनिर्णय - पृ० 198 115. हरिवंशपुराण सर्ग 60/568-69 - पृ० 752 116. हरिवंशपुराण सर्ग 60/555-56 - पृ० 751 117. सूरसागर पद सं० 1092 - पृ० 422 / 118. अर्थालंकाररहिता विधवेव सरस्वती / अग्निपुराण 119. हरिवंशपुराण सर्ग 15/2 - पृ० 229 120. सूर की काव्यकला - डॉ० मदन मोहन गौतम - पृ० सं० 267