________________ एक नहीं, ऐसे सैकड़ों स्थल हैं, जहाँ कवि ने इस प्रकार की समस्त शैली का अवलम्बन लिया है। प्रायः आलंकारिक शैली और संश्लिष्ट वर्णनों में यही समास बहुल भाषा प्रयुक्त हुई है। ऐसी भाषा को देखकर दण्डी, बाण तथा महाकवि भास की सहज ही स्मृति हो जाती है। एक ओर कवि ने जहाँ ऐसे लम्बे महावाक्यों का मोह रखा है, वहीं दूसरी ओर उन्होंने छोटे-छोटे वाक्यों में भी सुन्दर वर्णन किया है। श्री कृष्ण शिशुपाल युद्ध के समय प्रयुक्त भाषा ऐसी ही है हरिणेव रणे रौद्रे हरिणा दमघोषजः। हलिना भीष्मजो राजा भीष्माकारः पुरस्कृतः॥(४२/९३) हरिवंशपुराण के उनतालीसवें सर्ग में कवि ने इन्द्र द्वारा नेमिनाथ की स्तुति प्रसंग में "वृतानुगन्धिगद्यम्" का भी सुन्दर प्रयोग किया है। जिनसेनाचार्य की गद्यमयी भाषा द्रष्टव्य है "अथ मथितमहामृताम्भोधिसंशुद्धपीयूषपिण्डातिपानातिदोषाच्चिराजीर्यमाणेष्विवोद्गीर्यमाणेषु तत्खण्डखंडेषु, शङ्खषु खे खेदमुक्तैः।" (39 / वृत्तानुगन्धिपद्यम्) परन्तु उपदेशदान के समय तथा विविध सूक्तियों में कवि की भाषा सरल एवं विवरणात्मक रही है। यथा- (क) सति बन्धुविरोधे हि न सुखं न धनं नृणाम्। (11/96) (ख) आगाढे वाप्त्यनागाढे मरणे समुपस्थिते। न मुह्यन्ति जना जातु जिनशासनभाविताः॥(६१/९६) आचार्य जिनसेन ने अवसरानुकूल ऐसे शब्दों से अपनी भाषा को सजाया है जो भावों के चित्र उपस्थित करने में सक्षम है। यथा खड्गखेटकहस्तं तं आपतन्तमरियंदुः। खड्गखेटकहस्तोऽगाद्रथादुत्तीर्य संमुखः॥ प्रहारवञ्चनादानलाघवातिशयात्मनोः। असियुद्धमभूद्घोरं सेनापत्योस्ततस्तयोः॥ वार्ष्णेयखड्गघातेन प्रदत्तेन भुजे रिपुः। छिन्नबाहुद्वयोरस्कः पपात वसुधातले॥(५१/३९-४१) इन पद्यों को पढ़ते ही इसके अर्थ को समझे बिना ही प्रतीत हो रहा है कि कहीं युद्ध का चित्र है। तलवारें बज रही है, एक-दूसरे पर भयंकर प्रहार हो रहे हैं भुजाएँ कट रही हैं। इसी प्रकार की चित्रात्मक भाषा ऋतु वर्णन, सौन्दर्य वर्णन तथा नारियों के भावालाप वर्णन में देखी जा सकती है। हरिवंशपुराण की भाषा में नाद सौन्दर्य भी दिखाई देता है, जिसे पढ़ते ही पाठक भाव-विभोर हो जाता है। ==307=