________________ ने इसके सजीव चित्र प्रस्तुत किये हैं। पुराणकार ने अस्त्र-शस्त्रों के नाम, वीरों के नाम व्यूह-रचना इत्यादि का भी वर्णन कर युद्धों का रोमांचकारी निरूपण उपस्थित किया है। सूरसागर के वर्णन हमें आलंकारिक होते हुए भी स्वाभाविक सहज व सरस जान पड़ते हैं जबकि हरिवंशपुराण में बिम्बोत्पादक वर्णनों की अधिकता होने के कारण वे आलंकारिक प्रतीत होते हैं। संक्षेप में हरिवंशपुराण के वर्णन एक ही वस्तु को बारम्बार अभिनव व्याख्या प्रस्तुत करने वाले आलंकारिक एवं स्वच्छन्द हैं वहाँ सूरसागर के वर्णन स्वाभाविक, सांकेतिक व्यंजनापूर्ण, सरल चित्रमय एवं उदात्त हैं। हरिवंशपुराण और सूरसागर का काव्यरूप : प्रबन्धात्मकता के आधार पर काव्य के दो रूप होते हैं-प्रबन्ध काव्य एवं मुक्तक काव्य। प्रबन्ध काव्य में किसी कथा का बन्ध होता है तथा मुक्तक काव्य में यह बन्ध नहीं होता, इसलिए उनके पदों में पूर्वापर-सम्बन्ध की निरपेक्षता रहती है। प्रबन्ध काव्य के दो भेद होते हैं महाकाव्य एवं खण्डकाव्य। यहाँ हम दोनों आलोच्य कृतियों के काव्यरूप को काव्य-शास्त्रीय मापदण्डों के अनुसार देखेंगे। हरिवंशपुराण :. जिनसेनाचार्य कृत हरिवंशपुराण प्रबन्धात्मक स्वरूपानुसार पौराणिक महाकाव्य है। हिन्दी साहित्य-कोश में महाकाव्य के निम्न शैलियों का विवरण मिलता है-.. (1) शास्त्रीय (2) रोमांसिक (3) ऐतिहासिक (4) पौराणिक (5) रूपक कथात्मक (6) नाटकीय (7) प्रगीतात्मक (8) मनोवैज्ञानिक या मनोविश्लेषणात्मक। .. जिस प्रकार महाकाव्य पौराणिक शैली में होते हैं, उसी प्रकार चरितकाव्य भी पौराणिक शैली में पाये जाते हैं। - संस्कृत में पौराणिक काव्यों की परम्परा वाल्मीकि रामायण से मानी जाती है। श्रीमद् भागवतपुराण भी पौराणिक महाकाव्य है। ब्राह्मण साहित्य की अपेक्षा जैन साहित्य में पौराणिक काव्यों की रचना अधिक हुई है। अपभ्रंश, प्राकृत तथा संस्कृत आदि भाषाओं में इन काव्यों की बाढ़ सी आ गई है। ... संस्कृत पौराणिक काव्यों की सामान्य विशेषताएँ निम्न प्रकार से है(१) संस्कृत पौराणिक काव्यों में धार्मिकता और काव्यात्मकता का सामंजस्य होता है। एक ओर तो उनमें धर्म प्रचार की भावना गूढ़ रहती है तथा दूसरी ओर ऊँची ऊँची काव्य प्रतिभा के प्रदर्शन की। (2) इन काव्यों का प्रारम्भ प्रायः वक्ता श्रोता के वार्तालाप से होता है। (3) इन काव्यों का प्रधान रस शान्त होता है तथा अंग रूप वीर शृंगार रस भी सर्वाधिक