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________________ कर जोरि सूर विनती करै, सुनहु न हो रुकुमिनि-रवन। काटौ न फंद मो अंध कै, अब विलम्ब कारन कवन॥७९ (3) दण्डक पद्धति : किसी पद्य के एक पाद में यदि 26 अक्षरों से अधिक अक्षर हो तो उसे दण्डक कहते हैं। ये दण्डक दो प्रकार के होते हैं साधारण दण्डक तथा मुक्तक दण्डक। महाकवि सूर ने मुक्तछंदों का प्रयोग किया है जिसमें घनाक्षरी महत्त्वपूर्ण है। घनाक्षरी को मनहर और कवित्त भी कहते हैं। इसके प्रत्येक चरण में आठ-आठ वर्गों के विश्राम से सोलह तथा पन्द्रह पर यति तथा अन्तिः शर्ण गुरु होता है। गजमोचन अवतार प्रसंग की एक घनाक्षरी उदाहरणार्थ प्रस्तुत है झाई न मिटत पाई, आए हरि आतुर है, जान्यौ जब गज ग्राह, लिए जात जल मै जादौपति जदुनाथ, छाँडि खगपति साथ, जानि जस विह्वल, छुडाइ लीन्हौं पल में। नीरहू ते न्यारौ कीनौ, चक्र नक्र सीस छीनौ, देवकी के प्यारे लाल, ऐंचि लाए थल में। कहै सूरदास देखि, नैननि की मिटी प्यास, कृपा कीन्हीं गोपीनाथ, आए भुव तल मैं // deg (4) चौपाई पद्धति :- चौपाई मात्रिक छन्द है। इसमें 16 मात्राएँ होती है तथा अन्त में जगण, तगण वर्जित है। सूर ने दृढ़ता के साथ इस नियम का पालन किया है इसीलिए 14 मात्रा से 17 मात्राओं तक का प्रयोग इन्होंने इस छंद में किया है। (क) 14 मात्रा की चौपाई पिय देखी वन छवि निहारी। बार-बार यह कहति नारी॥१ (ख) 15 मात्रा की चौपाई ब्रजवासी सब उठे पुकारि। जल भीतर कह करत मुरारी॥२ (ग) 16 मात्रा की चौपाई सूर अति भए व्याकुल मुरारी। . नैन भरि लेत जल देत डारी॥३ (घ) 17 मात्रा की चौपाई 279
SR No.004299
Book TitleJinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayram Vaishnav
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2003
Total Pages412
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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