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________________ एक अन्य स्थल पर क्रूर भीलों द्वारा खून व माँस की बलि चढ़ाने का वर्णन है यहाँ इसी रस की परिणिति है वनमहिषं निपात्य विषमं विषमाः परितः, परुषकिरातका रुधिरमांसबलिप्रकरम्। विचकरुरुन्मनमशकमक्षिकमक्षिविषं, प्रविततविस्रगन्धदुरभीकृतदिग्वलयम्॥९ ... यहाँ पर बलिदान से मक्खियों व मच्छरों से युक्त वह स्थान भयानक प्रतीत हो रहा है। फैली हुई सड़ी बास से दुर्गन्धित समस्त वातावरण भयानक रस का संचार कर सूरसागर में भी यत्र-तत्र इस रस की अभिव्यंजना हुई है। दावानल प्रचण्डता का बड़ा ही भावपूर्ण चित्रण उपर्युक्त रस से परिपूर्ण प्रतीत हो रहा है भहरात झहरात दवा (नल) आयौ। घेरि चहुँ ओर करि सोर अंदोर बन धरनि आकास चहुँ पास छायौं। बरत बन बाँस थरहरत कुस काँस, जरि उड़त है मौंस अति प्रबल धायौ। बीभत्स रस : हरिवंशपुराण में बीभत्स रस के कुछ स्थल मिलते हैं। युद्ध के बाद युद्ध-स्थल की बीभत्सता के वर्णन में इस रस की परिणिति हुई है। कुछ उदाहरण प्रस्तुत हैं. तेषां तस्य संग्रामो यशःसंग्रहकारिणम्। अन्योन्याक्षेपिवाक्यानां प्रवृतो वार्तसंकथम्॥ छन्ना तेन कुमाराणां शिरोभी रुधिरारुणैः। चक्रनाराचनिर्भिन्नैः पकंजैरिव भूरभात्॥ सूरसागर में विशेषतः कोमल भावों की अभिव्यंजना हुई है अतः उसमें से "बीभत्सरस" के भावों को निकालना मुश्किल कार्य है। अद्भुत रस :- . - हरिवंशपुराण में साहित्य के सभी रसों का प्रकर्ष है। कवि ने द्वारिका के निर्माण में यदुवंशियों के प्रभाव-वर्णन में विद्याधरों की आकाशमार्ग से की गयी यात्राओं में, मायायुद्धों में एवं जिनेन्द्र अभिषेकादि में अद्भुत रस की अभिव्यक्ति की है। द्वारिका का अद्भुत सौन्दर्य देखिये भास्वत्कल्पलतारूढकल्पवृक्षोपशोभितैः। नागवल्लीलवंगादिपूगादीनां स सद्वनैः॥
SR No.004299
Book TitleJinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayram Vaishnav
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2003
Total Pages412
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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