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________________ हरिवंशपुराण में नेमिनाथ का वैराग्य तथा श्री कृष्ण के परमधामगमन पर बलदेव का विलाप इत्यादि प्रसंग इसी भाव की सुन्दर अभिव्यक्ति है। सूरसागर के कुछ पदों में भी यह रस प्रकर्ष हुआ है। हरिवंशपुराण : जब नेमिनाथ अपने विवाहोत्सव में मांसभोजी राजाओं के लिए पशुओं का निरोध देखते हैं, तब मनुष्यों की निर्दयता को देख कर वैराग्य धारण कर लेते हैं। उस समय राजमती प्रबल शोक के वशीभूत हो विलाप करने लगती है। उसकी करुणता से सभी लोग अत्यन्त दु:खी होते हैं। पथि तपस्यति तत्र कृते हिते नृपसुता मनसि त्रपितेहिते। न्यभृत तापमपारवियोगिनी कुमुदिनीव दिवारवियोगिनी॥ प्रबलशोकवशा प्रविलापिनी शिथिलभूषणकेशकलापिनी। परिजनेन वृता प्ररुरोद सा करुणशब्दतता व्युरुरोद सा॥ विधिमुपालभते वरहारिणं वरवधूर्वरमप्यतिहारिणम्। जघनपीनपयोधरहारिणी नयनवारिकणाविलहारिणी॥२८ श्री कृष्ण के परमधामगमन पर बलदेव जी के शोक का जिनसेनाचार्य ने विशद वर्णन किया है। वे कृष्ण के शव को लेकर वन में घूमते हैं। कई बार वे स्वयं मूर्छित हो जाने हैं। उनके रुदन का दृश्य करुणा से भरा पड़ा है। देखिये कवि के शब्दों में हा जगत्सुभग! हा जगत्पते! हा जनाश्रयण! हा जनार्दन! हाऽपहाय गतवानसि व मां हानुजैहि लघु हेति चारुदत्॥ हारि वारि परितापहारि तं पाययत्यपि विचेतनं मुहुः। क्राम्यतीषदपि तन्न तद्गले दूरभव्यमनसीव दर्शनम्॥ मार्टि मार्दवगुणेन पाणिना संमुखं मुखमुदीक्षते मुदा। लेढि जिघ्रति विमूढधीर्वचः श्रोतुमिच्छति धिगात्ममूढताम्॥२९ ..' इसके अलावा भी संसार की असारता दिखाने के अनेक प्रसंगों में "करुण रस" भरा पड़ा है। यहाँ केवल करुण रस की पुष्कल सामग्री का संकेत मात्र है। वास्तविक रूप तो ग्रंथ को देखते ही बनता है। सूरसागर : सूरसागर के दावानल-प्रसंग में करुण रस के भावों की अभिव्यंजना हुई है। सभी बाल गोपाल करुण स्वर में श्री कृष्ण से विनती करते हैं कि उन्हें अविलम्ब इस आपत्ति - से मुक्त करें
SR No.004299
Book TitleJinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayram Vaishnav
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2003
Total Pages412
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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