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________________ मूर्धन्य कवि माने जाते हैं। उनका मन मयूर श्री कृष्ण की बाल लीलाओं में सविशेष रमा है। उनकी रचना सूरसागर वात्सल्य रस से भरी पड़ी है। वात्सल्य के कुछ प्रसंग द्रष्टव्य है श्री कृष्ण के जन्म पर समस्त ब्रज में आनन्द छा जाता है। घर-घर बधाइयाँ बज रही हैं। नन्द के घर पर आबालवृद्ध हर्ष-मस्त हो नाच रहे हैं। नन्दोत्सव का भावपूर्ण वर्णन देखिये सूर के शब्दों में महरि जसोदा ढोटा जायौ घरघर होति बधाई। द्वार भीर गोप गोपिनि की महिमा बरनि न जाई। अति आनन्द होत गोकुल मैं, रतन भूमि सब छाई। नाचत वृद्ध तरुण अरु बालक, गोरस कीच मचाई। श्री कृष्ण के शिशु स्वभाव की सरलता, चंचलता तथा हठ देखिये मैया कबहि बढ़ेगी चोटी किती बार मोहि दूध पियत भई, यह अजहँ है छोटी। कांची दूध पियावत पचि पचि देत न माखन रोटी॥ कवि ने श्री कृष्ण की बालशोभा के चित्र भी बड़े मनोयोग से अंकित किये हैं। नवनीत-करधारी बाल कृष्ण का रूप तो अनुपम है। जब वे घुटनों के बल चल रहे हैं उस समय की धूलि-धूसरित बाल-शोभा का वर्णन बड़ा ही प्रभावोत्पादक बन पड़ा है। सोभित कर नवनीत लिए। घुटुरुनि चलत रेनु-तन मंडित, मुख दधि लेप किए। चारु कपोल लोल लोचन, गोरोचन तिलक दिए। लट-लटकनि मनु मत्त मधुप गन, मादक मदहिं पिए। कठुला कंठ ब्रज केहरि-नख, राजत रुचिर हिए।' श्री कृष्ण जब थोड़े बड़े होते हैं तब सखाओं के साथ ब्रज में घरों में घुस कर माखन चोरी करते हैं। उनकी चोरी से गोपियाँ परेशान हो जाती हैं। एक दिन जब उन्हें चोरी करते पकड़ा जाता है तो वे निर्भीक होकर उत्तर देते हैं कि मैं तो चींटी निकाल रहा था। कृष्ण का नटखट स्वरूप कवि के शब्दों में देखिये जसुदा कह लौ कीजै कानि। दिन प्रति कैसे सही परति है, दूध दही की हानि। अपने या बालक की करनी, जौ तुम देखौ आनि। गोरस खाइ खवावै लरिकनि, भाजत भाजन मानि। 259
SR No.004299
Book TitleJinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayram Vaishnav
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2003
Total Pages412
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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