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________________ आदि का वर्णन अपनी स्वतंत्र उद्भावना के आधार पर किया है। श्री कृष्ण के शिशु स्वभाव की सरलता, चंचलता, हठ, घुटनों के बल चलना, सखाओं के साथ खेलना, चन्द्र प्रस्ताव एवं अन्य बाल चेष्टाओं, माखनचोरी, गोचारण, वनगमन, गोदोहन, नंद यशोदा का प्यार आदि प्रसंगों में वात्सल्य रस की प्रधानता रही है। हरिवंशपुराण : जिनसेनाचार्य के श्री कृष्ण जन्म प्रसंग में एवं उनकी विविध बालक्रीड़ाओं में वात्सल्य रस का निरूपण मिलता है। वसुदेव द्वारा बालकृष्ण को नंद के यहाँ पहुंचाने में उनका स्नेह द्रष्टव्य है समर्प्य ताभ्यामहरस्यभेदं प्रवर्द्धनीयं निजपुत्रबुद्ध्या। शिशुं विशालेक्षणमीक्षणानां महामृतं कान्तिमयं स्रवन्तम्॥ जब बाल कृष्ण चित्त पड़ा हुआ अपने लाल-लाल हाथ-पैर चलाता है उस समय वह बरबस मन को आकृष्ट कर लेता है। उसकी अनुपम शोभा को उसे अतृप्त नेत्रों से देखते हैं स गोपगोपीजनमानसानि सकाममुत्तानशयो जहार। . . . सुरूपमिन्दीवरवर्णशोभं स्तनप्रदानव्यपदेशगोप्यः। अहंयवः पूर्णपयोधरास्तमतृप्तनेत्रा: पपुरेकतानम्॥ बलदेव के कथनानुसार जब देवकी अपने पुत्र कृष्ण को देखने के लिए गोकुल जाती है उस समय बाल कृष्ण को देखकर उसका हर्षित होना स्वाभाविक है। वह जैसे ही सुन्दर बाल गोपाल श्री कृष्ण को देखती है तो उसका मन अत्यधिक आनन्दित होता है। वह रोमांचित हो उठती है एवं उसे परम सन्तोष की प्राप्ति होती है। वह प्यार के साथ उत्तम वेष के धारक कृष्ण का स्पर्श करती है तथा चिरकाल तक उसे एकटक देखती है। वह यशोदा से कहती है कि हे यशस्विनी यशोदे! तू इस पुत्र के नित्य दर्शन करती है। तेरा यहाँ रहना प्रशंसनीय है। यशोदयानीय यशोदयाढ्यं प्रणामितं पुत्रममौ सवित्री। सुगोपवेषं निकटे निषण्णे परामृशन्ती चिरमालुलोके॥ जगौ च देवी विपिनेऽपि वासस्तवेदृशापत्यदृशो यशोदे। यशस्विनी श्लाघ्यतमो जगत्यां न राज्यलाभोऽभिमतोऽनपत्यः॥ इस प्रकार उपर्युक्त प्रसंगों में वात्सल्य रस की अभिव्यक्ति हुई है। सूरसागर : महाकवि सूर वात्सल्य के निरूपण में भारत के ही नहीं वरन् विश्व साहित्य के
SR No.004299
Book TitleJinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayram Vaishnav
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2003
Total Pages412
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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