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________________ श्रीमद् भगवद्-गीता की प्रस्तावना में विद्वान् श्री नारायणशास्त्री ने "कृष्ण" शब्द की व्याख्या बड़े ही सुन्दर ढंग से की है . कर्षति सर्वान् स्वकुक्षौ प्रलयकाले इति कृष्णः। अर्थात् प्रलयकाल में सब जीवों को जो अपने में लीन करे, उसका नाम कृष्ण है। साधारणतया "कृष्ण" शब्द का अर्थ है-श्याम, गहरा, काला, नीला एवं एक वृक्ष का नाम। लेकिन संस्कृत-इंग्लिश-डिक्सनरी के लेखक एम.एम. विलियम ने कृष्ण शब्द का अर्थ लिखा है :-Name of the Poet of the R.V. desended from Agiras. . "कृष्ण" शब्द वैदिक युग में प्रचलित है। वैदिक साहित्य में अग्नि का नाम या विशेषण "कृष्णवा" आता है, जिसका अर्थ है-अंधेरे पथ पर आगे बढ़ने वाला। वेदों में कृष्ण नामक एक ऋषि का वर्णन है। ऋग्वेद के अष्टम मण्डल के 85-86-87 तथा दशम मण्डल के 42, 43, 44 सूक्तों के ऋषि का नाम कृष्ण है। वे मन्त्रद्रष्टा ऋषि हैं। इन्हीं के नाम पर "कार्णायण" गोत्र चला था। हो सकता है कि इस प्रचलित नाम का आधार ग्रहण कर वासुदेव ने अपने पुत्र का नाम कृष्ण रखा हो। डॉ० नन्ददुलारें वाजपेयी ने लिखा है कि गाथा या जातक टीकाकारों के मतानुसार "कृष्ण" एक गोत्र का नाम है। यह गोत्र वशिष्ठ और पराशर गोत्र के अन्तर्गत आता है। यह गोत्र ब्राह्मणों का होने पर भी यज्ञ के समय क्षत्रिय अपने कर्मादि-अनुष्ठान इस गोत्र में भी कर सकते थे। आश्वलायण सूत्र के अनुसार यज्ञ में क्षत्रिय का गोत्र उनके पुरोहित के गोत्र के अनुसार होता है। इसी में वासुदेव "कृष्णयक" गोत्र के हो गये। इस प्रकार इन विद्वानों की सम्मतियों के अनुसार "कार्णायण" गोत्र से ही कृष्ण नाम की उत्पत्ति हुई। वैष्णव परम्परा अनुसार "कृष्ण" शब्द में प्रयुक्त प्रत्येक ध्वनि का एक अलग ही : अर्थ है। इस अर्थ के अनुसार वे "परब्रह्म" के रूप में प्रतिष्ठित होते हैं। "कृष्ण" शब्द में ककार, ऋकार, षकार, णकार, अकार एवं विसर्ग निहित है। इसमें "ककार" ब्रह्मां का वाचक है। "ऋकार" अनन्त (शेष) का वाचक है। "षकार" शिव का वाचक है। "णकार" धर्म का वाचक है। "अकार" श्वेत द्वीप का वाचक है। इस प्रकार कृष्ण में समस्त तेजों की राशि का बीज-कारण है। वेदों में श्री कृष्ण :- वेदों में श्री कृष्ण को अनेक नामों से उल्लेखित किया गया है। उनके मुख्य स्वरूप निम्न प्रकार से हैं :विष्णु रूप :____ साहित्य में कृष्ण के जिन गुणों का वर्णन किया गया है, अगर उन गुणों के ऊपर * ध्यान केन्द्रित किया जाए तो स्पष्ट हो जाता है कि वैदिक युग के विष्णु में भी इन्हीं गुणों
SR No.004299
Book TitleJinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayram Vaishnav
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2003
Total Pages412
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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