________________ डॉ० हरिवंशलाल शर्मा ने रासलीला को एक वैज्ञानिक रूप में प्रस्तुत करते हुए लिखा है कि-एक मुख्य केन्द्र के आकर्षण के अनुसार इसमें चारों ओर गतिमान आश्रितों की जो गति होती है, उसे रास कहते हैं। "सौर-मण्डल" का सूर्य केन्द्र है, और उसके आकर्षण के कारण सूर्य के चारों ओर स्थित ग्रह एवं उपग्रह गतिमान हैं। यही उनकी रास-लीला है।११९ राधावल्लभ सम्प्रदाय में इस लीला को श्रीलालजी (श्री कृष्ण) प्रेमतत्त्व (हिततत्त्व) के विकास के लिए माना गया है। रास-लीला के एक ही तत्त्व, हिततत्त्व श्री कृष्ण व गोपी रूप में आविर्भूत होता है।१२० महामहोपाध्याय पं० गिरधर शर्मा चतुर्वेदी ने रास-रहस्य को वैदिक विज्ञान प्रतीकात्मकता के रूप में विवेचित किया है। उन्होंने रास-लीला का सम्बन्ध चन्द्रमा से स्थापित किया है। चन्द्रमा राशि चक्र में रास-लीला करता है। नक्षत्रों की गणना कृतिका से की जाती है। इसके अनुसार विशाखा नक्षत्र मध्य में होने के कारण वह रासेश्वरी है इसका दूसरा नाम "राधा" भी है। इसके आगे नक्षत्र को अनुराधा कहा जाता है। जिस पूर्णिमा को चन्द्रमा विशाखा नक्षत्र पर रहता है, उस दिन सूर्य कृतिका नक्षत्र पर रहता है। सम्मुख स्थित सूर्य की सुषुम्ना राशि से विशाखायुक्त चन्द्रमा प्रकाशित होता है। कृतिका का सूर्य वृष राशि का होता है अतः राधा को वृषभानु-सुता कहा जाता है। तदनन्तर जब पूर्ण चन्द्रमा राधा के ठीक सम्मुख भाग में कृतिका पट आता है उस समय कार्तिक पूर्णिमा या रास-क्रीड़ा का प्रमुख दिन होता है।१२१ "राजयोग" में गोपी को इन्द्रियों का प्रतीक मानकर रास-क्रीड़ा की प्रतीक परक व्याख्या की गई है। इन इन्द्रियों का अध्यक्ष मन-हृदय पद्मरूपी हृदय में निवास करता है। वहीं इन्द्रियों का पालक है। मन की वृत्तियाँ ही गोपमन की ब्रजांगनाएँ हैं। उनका अपने मनरूपी पति के साथ रमण न करके नित्य सर्वाकर्षण कृष्ण (आत्म तत्त्व) के साथ रमण रास-क्रीड़ा है। प्रेमयोग के अनुसार मनुष्य की प्रकृतिगत आत्मा द्वारा भागवत आत्मा की प्रेममय खोज को रास-क्रीड़ा का प्रतीक बनाया है। प्रकृतिगत आत्मा भागवत आत्मा के सौन्दर्य में विमोहित हो उसकी ओर दौड़ती है तथा मिलन करती है।१२२ .. हरिवंशपुराण में भी श्री कृष्ण द्वारा रास-क्रीडा करने का संकेत मिलता है। कुमार कृष्ण अतिशय यौवन के उन्माद से भरी गोप-कन्याओं के साथ क्रीड़ा करते हैं।१२२ परन्तु यह वर्णन संक्षेप में है। पुराणकार ने मात्र इसका संकेत ही किया है जबकि सूर का मन तो इस लीला में वर्णन में अत्यधिक रमा है क्योंकि उनके अनुसार रास "ब्रह्मानन्द" है। "रास-लीला' में राधा-गोपी तथा वृन्दावन, गोलोक का अत्यधिक महत्त्व है अतः इनका भी संक्षिप्त वर्णन करना प्रसंगोचित्त है। -2436 -