SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 254
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री कृष्ण के अवतार का भी एक निश्चित उद्देश्य है और वह यह कि पृथ्वी पर उत्पन्न दैत्यों का संहार करना तथा धर्म की स्थापना करना। इसी कारण कृष्ण को एक अलौकिक चरित्र के रूप में चित्रित किया है। सूर के अनुसार इन्हीं निर्गुण निरंजन पूर्ण ब्रह्म ने कृष्ण के रूप में अवतार लेकर अनेक लीलाएँ की, जिनका चतुरानन तथा शिव भी अन्त नहीं पा सके। पूरन ब्रह्म पुरान बखानै चतुरानन सिव अन्त न जाने। गुनगन अगम-निगम नहिं पावै, ताहि जसोदा गोद खिलावै॥ एक निरंतर ध्यावै ज्ञानी, पुरुष पुरातन सो निर्वानी। जप-तप ध्यान न आवै, सोई नंद के आंगन धावै॥३ इस प्रकार श्री कृष्ण घट-घट वासी हैं तथा वे ही अंश व कला रूप में तथा नित-नित लोक विलासी के रूप में असंख्य रूप धारण कर पृथ्वी पर अवतरित होते हैं। सूरदास जी ने कृष्ण को पूर्णावतार माना है। असुरों के संहार करने के लिए वे अवतार लेते हैं। “निर्गुणावस्था में जो अच्युत, अविनाशी, परमानन्द, सुखराशि हैं वे ही भूमि भार हरने के लिए शरीर धारण करते हैं तथा सगुण-रूप में अवतरित होते हैं।" जब-जब हरि माया ते दानव, प्रकट भए है आप। / तब-तब धरि अवतार कृष्ण ने कीन्हों असुर संहार॥ सूर के कृष्ण परब्रह्म के अवतार होने के कारण विराट स्वरूप को धारण करने वाले हैं। निर्गुण ब्रह्म ही सगुण रूप में परिणत हुआ है। वे साधुओं के परित्राण के लिए, भू-भार हरण करने के लिए अवतार धारण करते हैं। वे किसी धर्म कर्म से बँधे न होकर धर्म-कर्म तथा योग यज्ञ से परे हैं। भक्त हेत अवतार धरौ कर्म धर्म के बस में नाहीं, जो यज्ञ मन में न करौ। ब्रह्म कीट आदि लौ व्यापक सबको सुख दे दुखहि हरौ। 5 इस प्रकार सूरसागर में श्री कृष्ण को परब्रह्म माना गया है। इस ग्रन्थ में ब्रह्म स्वयं अपने अगाध माहात्म्य को घोषित करते हुए कहते हैं कि मैं जगत में सर्वव्यापक हूँ। वेदों में मेरा ही गुणगान किया है। मैं ही कर्ता हूँ। मैं ही भोक्ता हूँ। जो कुछ नाना स्वरूप में चर-अचर हैं, वह सब मैं ही हूँ। मेरे सिवाय कोई नहीं है, जो कुछ प्रतीत होता है, वह सब मैं ही हूँ। मैं ही विष्णु हूँ, मैं ही रुद्र हूँ, मैं ही ब्रह्मा हूँ।। (क ) मै व्यापक सब जगत वेद चारों मोहि गायौं। __ मै कर्ता मै भोगता मों बिनु ओर न कोई। 6
SR No.004299
Book TitleJinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayram Vaishnav
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2003
Total Pages412
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy