________________ ब्रह्म के तीन गुण : शुद्धाद्वैत के मतानुसार ब्रह्म के तीन गुणों का वर्णन मिलता है जिसे महाकवि सूर ने सूरसागर में निरूपित किया है(१) सर्वकर्तृत्व : ब्रह्म अकेला रमण नहीं करता है, अतः वह स्वयं ही जीव तथा जगत आदि रूपों में परिणत होकर रमण करने लगता है। सूरदास ने इस गुण का बखान करते लिखा है सोभा अमित अपार अखंडित आपु आतमाराम। पूरन ब्रह्म प्रकट पुरु 'त्तम 8 विधि पूरन काम॥७५ (2) विरुद्ध धर्माश्रयत्व :. यह ब्रह्म का दूसरा महत्त्वपूर्ण गुण है। इसका तात्पर्य है कि वह विरोधी कर्मों का आश्रय है। वह निराकार भी है तो भी साकार है। निर्गुण भी है तो भी सगुण है। वह एक है, फिर भी सर्वव्यापक है। वह अचल भी है तो भी चल है। वह सर्वज्ञ है, फिर भी अज्ञानी है। वह भक्तों के अधीन है। सूरदास का अधोलिखित पद इन्हीं गुणों को वर्णित करता है आपुहिं पुरुष आपुहिं नारी। आपुहिं वानप्रस्थ व्रतधारी। आपुहिं माता आपुहिं ताता। आपुहिं भगिनी आपुहिं भ्राता। .. आपुहिं पंड़ित आपुहिं ज्ञानी। आपुहिं राजा, आपुहिं रानी॥ (3) रस रूपत्व :. ब्रह्म रस रूप है अर्थात् आनन्द स्वरूप है। छान्दोग्य-उपनिषद् में कहा गया है कि 'रसो वै सः'। सूर ने कृष्ण को इस रूप में स्वीकार किया है तथा कहा है कि भक्तों के परिणामार्थ वे अवतार ग्रहण करते हैं। उन्होंने ही अनेक लोकरंजनकारी लीलाएँ की हैं भक्त हेत अवतार धरौ कर्म धर्म के बल में नाहीं, जोग यज्ञ मन में न करौं। दीन गुहारी सुनो स्रवननि भरि गर्व वचन सुनि हृदय जरौं। भाव अधीन रहौं सब ही कैं, और न काहू नैक डरौं। ब्रह्म कीर आदि लौ व्यापक सब को सुख दे दुखहिं हरौं / - सूरसागर में ब्रह्म को निरूपित करते हुए सूर ने सगुण-निर्गुण की समस्त मान्यताओं को भगवान् ने समाविष्ट की है। ये ही ब्रह्म अणु-अणु में व्याप्त हैं। वे ही अधः ऊर्ध्व तथा सर्वत्र प्रकाशमान हैं। वे ही सृष्टि के रचयिता, पालन-कर्ता तथा संहार कर्ता हैं। श्री कृष्ण ही परब्रह्म हैं, वे अगम हैं, अनंत हैं। उन्होंने अपने रसात्मक स्वरूप से लोकरंजनकारी आ - - % 3D