________________ श्री कृष्ण की इन्हीं महानताओं के कारण कई भक्तों ने अपने सम्पूर्ण जीवन को उनके प्रति न्यौछावर कर दिया। इतना ही नहीं, आज उनके प्रतीक-स्वरूप का दर्शन करने के लिए हजारों भक्त तड़पते, छटपटाते दिखाई देते हैं। यह चिन्तनीय प्रसंग है कि कौन-सी महानता थी उस आत्मा में? कन्याएँ, आज जिसके समतुल्य वर मिलने के संकल्पों को अपने मन में पाले रखती हैं, माताएँ श्री कृष्ण जैसा बच्चा प्राप्त करने की अपने इष्टदेव के समक्ष मनौती रखती हैं और युवक ऐसी ही अद्भुत एवं वफादार, हर परिस्थिति में साथ देने वाले मित्र का साथ मिलने की आशाओं-आकांक्षाओं को अपने मन में संजोये हुए हैं। इस वृत्तान्त से स्पष्ट होता है कि श्री कृष्ण एक महान्, गुणवान, महात्मा, कोई अद्भुत तेजस्वी एवं विलक्षण या असाधारण हस्ती का नाम था। यह बात सनातन सत्य है कि श्री कृष्ण सर्वगुण सम्पन्न और सोलह कलाओं से पूर्ण अवतार, निर्विकारी एवं मर्यादापुरुषोत्तम थे। श्री कृष्ण-चरित्र बड़ा ही रहस्यमय एवं दर्शन की तरह गूढ रहा है। विभिन्न जनश्रुतियों—दार्शनिक-धार्मिक मान्यताओं, पौराणिक आख्यानों एवं कवि कल्पनाओं ने श्री कृष्ण चरित्र को एक ऐसा समन्वित स्वरूप प्रदान कर दिया है कि उनमें से ऐतिहासिक कृष्ण को ढूंढ़ना असंभव नहीं तो कठिन अवश्य रहा है। दार्शनिक एवं धार्मिक मान्यताओं ने श्री कृष्ण को विष्णु का अवतार तथा परब्रह्म के रूप में निरूपित किया है तो कवियों ने इन्हें रसनायक के रूप में प्रतिष्ठित किया है। "सम्पूर्ण भारतीय इतिहास में कृष्ण का चरित्र एक ऐसा चरित्र रहा है जो अपने विविधमुखी परम्परा, विरोधी व्यक्तित्व, लोकनायकत्व, सामाजिक-धार्मिक रूढ मान्यताओं का भंजक, घोर विलासी होते हुए भी योगिराज, राजनीति और कूटनीति के दक्ष प्रयोक्ता, असुर-संहारक, उद्भट्ट-चिंतक और युगद्रष्टा तथा भक्ति के सबसे ललित, आकर्षक एवं मोहक रूप का अधिकारी रहा है। श्री कृष्ण के इस प्रकार इतने विविधमुखी स्वरूप रहे हैं कि इन्हें एक ही व्यक्ति मानने में सहज ही विश्वास नहीं होता। इन विरोधों में भी श्री कृष्ण की पूर्णता का रहस्य छिपा है। वे जीवन को समग्र एवं सहजरूप से स्वीकार करते हैं। आचार्य रजनीश के अनुसार भी श्री कृष्ण पूर्ण हैं, शून्य हैं और अखण्डनीय हैं। श्री कृष्ण तो दर्पण की भाँति स्वच्छ एवं निर्लिप्त हैं। जिस प्रकार दर्पण में हर व्यक्ति अपना प्रतिबिम्ब देख सकता है ठीक उसी तरह हर व्यक्ति अपना मनोवांछित कृष्ण रूप निहार सकता है। श्रीमद्भगवतगीता में श्री कृष्ण ने यही कहा है कि जो भक्त मुझे जिस रूप में भजता है, मैं उसे उसी रूप में प्राप्त होता हूँ। श्री कृष्ण अपने विशिष्ट गुणों से युक्त होने के बावजूद भी वे जनसाधारण के बीच में रहते हैं और उनके समान आचरण करते हैं। वे जनसाधारण के मित्रवत् हैं जिन्हें भला-बुरा कहने में भक्त तनिक भी संकोच नहीं करते। इसलिए उनके जीवन-आदर्शों द्वारा जनता को प्रभावित करने का अत्यधिक सामर्थ्य रहा है।