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________________ श्री कृष्ण-काव्य-परम्परा श्री कृष्ण का सार्वभौम व्यक्तित्व : भारतीय धर्मग्रन्थों में जिन महापुरुषों की चर्चा की गई है, उनमें राम और कृष्ण विशेष उल्लेखनीय हैं। राम राजा, मर्यादापुरुषोत्तम एवं प्रजापालक हैं इसलिए जनसाधारण की दृष्टि में वे आराध्य, पूज्य और श्रद्धा के पात्र हैं परन्तु इसके विपरीत श्री कृष्ण की यश-गाथा तो निराली है। उनकी पहचान स्वयं में एक अद्भुत भी है और अद्वितीय भी। फलस्वरूप आज भी श्री कृष्ण का व्यक्तित्व धर्म, सम्प्रदाय, भाषा, जाति एवं क्षेत्र की परिसीमाओं का उल्लंघन कर राष्ट्रीय संस्कृति की धरोहर एवं अन्तर्राष्ट्रीय एकता का प्रतीक बन गया है। . आज श्री कृष्ण की सर्वव्यापकता के सम्बन्ध में मत-वैभिन्य नहीं है। कृष्णचरित्र पूर्ण रूप से भारतीय जन-जीवन में विशेष आकर्षण का केन्द्र रहा है। यह एक ऐसा दिव्य और ऐतिहासिक चरित्र रहा है जो कि आज अनेक समुदायों में, समाज में तथा संसार में स्वयं के.सार्वभौमिक व्यक्तित्व के लिए नाना प्रकार की सीमाओं को लांघ कर हमारी उच्च सभ्यता और संस्कृति के समन्वय में सेतु का कार्य करते हुए अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति का पात्र बना है। श्री कृष्ण आकर्षण की प्रतिमूर्ति और पूर्णता के रहस्यमय प्रतीक रहे हैं। वे योगी भी हैं एवं भोगी भी हैं तथा दोनों से ऊपर भी। श्री कृष्ण ने जीवन में राग की, प्रेम की, काम की, योग की, भोग की एवं ध्यान आदि की समस्त दिशाओं को एक साथ स्वीकार किया है। ___ श्री कृष्ण के जीवन का रहस्य उनकी चेतना के अद्भुत आनन्द में समाहित है। उनकी चेतना का आनन्द एक ऐसा आनन्द है, जहाँ सुख है परन्तु सुख का उल्लास नहीं, दुःख है परन्तु दु:ख का विषाद नहीं। श्री कृष्ण के व्यक्तित्व में एक प्रसार है, फैलाव है, उससे उनकी पूर्णता अनन्त है। - श्री कृष्ण के जीवन का एक-एक प्रसंग मनुष्य को सच्चा मार्गदर्शन प्रदान करता है अतः उनके जीवन में सूर्य की प्रखरता एवं चन्द्र की सौम्यता दृष्टिगोचर होती है। उनके जीवन में ज्ञान, कर्म और भक्ति का त्रिवेणी-संगम एवं बुद्धि, प्रेम और पराक्रम का अनूठा समन्वय दिखाई देता है।
SR No.004299
Book TitleJinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayram Vaishnav
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2003
Total Pages412
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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