SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 222
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ यह कौस्तुभ मणि लेकर जाओ। इस पर जरत्कुमार वहाँ से चल दिया। तदुपरान्त श्री कृष्ण पृथ्वी-शय्या पर सो गये। ___कुछ समय बाद बलदेव जी शीतल जल लेकर वेग से श्री कृष्ण के पास आये रास्ते में उन्हें अपशकुन होने लगे। श्री कृष्ण को देखकर वे एकदम चीख पड़े। उन्हें मूर्छा आ गई। सचेतन होने पर उन्होंने देखा कि उनके पैर में किसी ने तीक्ष्ण बाण मारा है। इस पर वे कुपित हो गये। उन्होंने सिंहनाद किया कि किसने मेरे छोटे भाई को अकारण मारा है, मेरे सामने आये। परन्तु उन्हें कोई नहीं दिखा। वे सन्ताप करने लगे उन्होंने श्री कृष्ण के शव को उठा लिया एवं आकुलता के साथ वन में घूमते रहे। .. इत्येनकदिनरात्रियापनैः सोऽत्यतन्द्रितमनोवचोवपः। प्रत्यहं हरि वपुर्वहन् भ्रमन् प्रत्यपद्यत रतिं न कानने // 19363/44 उधर जरत्कुमार श्री कृष्ण की आज्ञानुसार पाण्डवों की सभा में गया। वहाँ उसने रोते हुए सम्पूर्ण वृत्तान्त कह सुनाया। समस्त पाण्डव अपने परिवारजनों व सेना के साथ शीघ्रता से उस वन में आये वहाँ उन्होंने बलदेव को प्राप्त किया। उन्होंने बलदेव से श्री कृष्ण के दाह संस्कार की प्रार्थना की परन्तु बलदेव जी ने कृष्ण का मृत शरीर नहीं दिया वरन् उन पर क्रोध किया। दनन्तर बहुत समझाने पर छः माह पश्चात् बलदव ने तुंगीगिरि के शिखर पर श्री कृष्ण का दाह संस्कार किया। उन्होंने नेमिनाथ जिनेन्द्र से दीक्षा ग्रहण कर ली एवं चिरकाल तक घोर तप किया। इत्यशेषितपरीषहारिणा सीरिणा विषयदोषहारिणा। अभ्यतप्यत तपोऽतिहारिणा जैनसच्चरणभूविहारिणा॥१९४६३/११४ समीक्षा : उपर्युक्त प्रकार से दोनों कृतियों में यह प्रसंग निरूपित हुआ है परन्तु सूरसागर में जहाँ इस प्रसंग का कवि ने संकेत मात्र किया है, वहाँ हरिवंशपुराणकार ने इस प्रसंग को विस्तृत स्वरूप प्रदान किया है। हरिवंशपुराण के बासठवें एवं तिरसठवें सर्ग में श्री कृष्ण के परमधामगमन एवं बलराम के तप-सिद्धत्व ग्रहण करने का वर्णन मिलता है। जिनसेनाचार्य ने इस प्रसंग में अपनी मौलिक उद्भावनाओं का समावेश कर सम्पूर्ण घटना का नव्य रूप प्रदान किया है। वैष्णव परम्परा में जहाँ बलराम जी का श्री कृष्ण से पहले परमधाम गमन का उल्लेख मिलता है, वहाँ हरिवंशपुराण में श्री कृष्ण का बलराम से पहले परमधामगमन बताकर बलदेव जी द्वारा जैन दीक्षा ग्रहण कर तप करने का कहा गया है। इस प्रसंग में द्वारिका जलने पर श्री कृष्ण व बलदेव का हस्तवज्र नगर में जाना, वहाँ की सेना को पराक्रम द्वारा पराजित करना, तत्पश्चात् कौशाम्ब वन में जाना, श्री कृष्ण - 200
SR No.004299
Book TitleJinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayram Vaishnav
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2003
Total Pages412
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy