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________________ उधर रुक्मिणी के फुआ ने उसे अवधिज्ञान-धारक अतिमुक्तक मुनि द्वारा कही गई बात सुनाई तथा कहा कि-नारद मुनि की बात सत्य होगी परन्तु तेरा भाई तुझे उसके मित्र शिशुपाल को देना चाहता है। इस पर रुक्मिणी के कथनानुसार उसकी फुआ ने एक विश्वासपात्र व्यक्ति को पत्र देकर गुप्त रूप से श्री कृष्ण के पास द्वारिका भेजा। पत्र में लिखा था कि हे कृष्ण, रुक्मिणी आपमें अनुरक्त है तथा आपके नाम रूपी आहार से सन्तुष्ट हो प्राण धारण कर रही है। यह आपके द्वारा अपना हरण चाहती है। हे माधव! यदि माघ-शुक्ला अष्टमी के दिन आप आकर शीघ्र ही रुक्मिणी का हरण कर ले जाते हैं तो निस्सन्देह यह आपकी होगी। अन्यथा पिता और बान्धवजन के द्वारा यह शिशुपाल को दे दी जायेगी और उस दशा में आपकी प्राप्ति न होने से मरना ही इसे शरण रह जायेगा अर्थात् यह आत्मघात कर मर जायेगी। यह नागदेव की पूजा के बहाने आपको नगर के बाह्य उद्यान मन्दिर में मिलेगी सो आप दयालु हो, अवश्य ही आकर इसे स्वीकृत करें।१३५ . ___ श्री कृष्ण उस पत्र को पढ़कर बलदेव के साथ गुप्त रूप से कुण्डिनपुर पहुँच गये। उधर शिशुपाल भी अपनी चतुरंगिणी सेना के साथ पहले ही पहुँच गया था। रुक्मिणी नागदेव की पूजा कर उद्यान में पहले ही खड़ी थी। कृष्ण ने वहाँ आकर उसे अच्छी तरह से देखा एवं कहा कि हे भद्रे ! मैं तुम्हारे लिए ही आया हूँ और जो तुम्हारे हृदय में है, वही मैं हूँ। यदि सचमुच ही तूने मुझसे अपना अनुपम प्रेम लगा रखा है तो हे मेरे मनोरथों को पूर्ण करने वाली प्रिये! आओ रथ पर सवार हो जाओ। इस प्रकार श्री कृष्ण ने रुक्मिणी का हरण कर लिया। तदनन्तर उन्होंने रुक्मिणी के भाई रुक्मी, शिशुपाल तथा . भीष्मक को रुक्मिणी हरण समाचार देकर अपना रथ आगे बढ़ा दिया। समाचार प्राप्त होते ही दोनों महावीरों ने अपनी विशाल सेना के साथ श्री कृष्ण का पीछा किया। सेना को निकट आते देख रुक्मिणी भयभीत हो गई परन्तु श्री कृष्ण ने उसे शान्त किया। जैसे ही शिशुपाल एवं रुक्मी के साथ शत्रु सेना उनके पास आई उस समय वेग के साथ श्री कृष्ण व बलराम ने अपने रथों को मोड़ लिया। तदन्तर रोष से भरे हुए इन दोनों के बाणों से शत्रु सेना चारों ओर भाग कर नष्ट हो गई तथा उसका अहंकार नष्टभ्रष्ट हो गया। तदनन्तर श्री कृष्ण ने गिरनार पर्वत पर रुक्मिणी से विवाह किया। रुष्टयोः शरजालेन द्विष्टसैन्यं ततोऽनयोः / शिष्टं ननाश विध्वस्तक्लिष्टदर्पमभिद्रुतम्॥ हरिणेव रणे रौद्रे हरिणा दमघोषजः। हलिना भीष्मजो राजा भीष्माकारः पुरस्कृतः॥१३६ 42/92-93 उपर्युक्त विवेचनानुसार हरिवंशपुराण में निरूपित यह प्रसंग सूरसागर से कुछ वैषम्य पर आधारित है। इसमें नारदमुनि का सत्यभामा-मानभंग प्रसंग, रुक्मिणी की उसकी -170 -
SR No.004299
Book TitleJinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayram Vaishnav
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2003
Total Pages412
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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