________________ रुंड भकरुंड झुकि परे धर धरनि पर, गिरत ज्यों बेग करि ब्रज मारे॥१३३ रुक्मिणी ऐसे भयंकर युद्ध को देखकर घबरा गई। श्री कृष्ण न उसे धैर्य प्रदान किया। अनेक राजा-महाराजा प्राण लेकर भागने लगे। लड़ते-लड़ते प्रातः काल होने आया एवं सूर्योदय होने लगा। भगवान् श्री कृष्ण ने शिशुपाल को यह कहकर जीवित छोड़ दिया कि-पुरुष का रणक्षेत्र से भागना ही मरने जैसा है। अतः मैं तुझे छोड़ रहा हूँ। शिशुपाल खिस्याकर वहाँ से चल दिया। ___जब रुक्मी ने श्री कृष्ण द्वारा शिशुपाल को पराजित करने की बात जानी तो उसने भी श्री कृष्ण पर युद्ध कर बाणों की वर्षा शुरु कर दी। श्री कृष्ण ने क्षण भर में उसके बाणों को काटकर उसके रथ की ध्वजा काट दी एवं रथ के घोड़े एवं सारथि को मार गिराया। रुक्मी धरती पर गिर पड़ा। उसने तुरंत उठकर हरि से पुनः युद्ध प्रारम्भ किया। श्री कृष्ण ने जल्दी ही उसके सारे शस्त्रों को निवार दिया। अब वे क्रोधित होकर जैसे ही तलवार लेकर उसे मारने लगे तो रुक्मिणी ने प्रार्थना कर उसे जीवन-दान दिलवा दिया। रुक्मी श्री कृष्ण के चरणों में गिर पड़ा तथा कहने लगा कि हे प्रभु! मैंने अहंकार वश आपके मर्म को नहीं जाना था, मुझे क्षमा करें। तत्पश्चात श्री कृष्ण रुक्मिणी को लेकर द्वारिका आये। द्वारिकावासियों ने जब यह सुना कि श्री कृष्ण अनेक शत्रुओं को जीतकर रुक्मिणी को लेकर नगर में आ रहे हैं तो सारे नगर में भव्य उत्सव का आयोजन किया गया। नगर-जन मंगलाचरण करने लगे। जगह-जगह सोने के कलशों में जल भरकर उनकी वंदना होने लगी। श्री कृष्ण ने रुक्मिणी से विधिवत् विवाह कर उसे पटरानी बनाई। __ इस प्रकार सूरसागर में वर्णित यह प्रसंग भागवतानुसार है परन्तु सूर ने अपनी मौलिकता से इस प्रसंग को और भी सुन्दर बना दिया है। कवि ने इसे दो लीलाओं में वर्णित किया है। रुक्मिणी के पत्र एवं सन्देशों में तथा शिशुपाल के साथ श्री कृष्ण के युद्ध में कवि ने भाव-पूर्ण चित्र अंकित किए हैं। . आचार्य जिनसेन ने भी इस प्रसंग का विस्तार से निरूपण किया है। यह प्रसंग सूरसागर में कुछ भिन्नता पर आधारित है। आचार्यजी ने रुक्मिणी-हरण का कारण यह बताया है कि एक बार नारद मुनि कृष्ण के अन्तःपुर में गये वहाँ पर अपनी सजावट में लीन सत्यभामा ने उनका सत्कार नहीं किया। तब वे सत्यभामा का मान भंग करने हेतु एक सुंदर कन्या की खोज करने लगे। एक दिन फिरते-फिरते वे कुण्डिनपुर पहुंचे। वहाँ राजा भीष्मक की पुत्री रुक्मिणी को देखकर उन्होंने उसे श्री कृष्ण के लिए उपयुक्त जाना। नारद ने वहाँ श्री कृष्ण की प्रशंसा कर रुक्मिणी का अनुराग श्री कृष्ण में बढ़ाया तथा रुक्मिणी का चित्रपट लेकर श्री कृष्ण के पास पहुंच कर श्री कृष्ण का मन रुक्मिणी की ओर आकृष्ट किया।३४ =169