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________________ कितिक बात प्रभु तुम आयुस तें, वह जानौ मो जात मरयौ। - सूरदास प्रभु कंस निकंदन, भक्त हेतु अवतार धरयौ।२० हरिवंशपुराण में पूतना की भाँति एक देवी भयंकर पक्षी का रूप धारण कर कृष्ण को मारने के लिए आती है लेकिन कृष्ण उसकी चोंच पकड़कर इतनी जोर से दबाते हैं कि वह भाग जाती है इतीरितं ताः प्रतिपद्य याताः प्रदृश्य चैकोग्रशकुन्तरूपा। अनुद्य हन्त्री हरिणात्ततुण्डा प्रचण्डनादा प्रणनाश भीता॥२९ 35-41 समीक्षा : दोनों कवियों का यह वर्णन बालकृष्ण की अनुपम शक्ति को प्रदर्शित करता है। सूर ने इस प्रसंग को दो पदों में वर्णित किया है जबकि जिनसेन ने इस ओर भी संक्षिप्त रूप प्रदान किया है। प्रतीकात्मकता : कागासुर वध के प्रतीकात्मक अर्थ की बात करें तो कौआ मूलतः दुष्ट, कटुभाषी तथा समस्त आंतरिक कलुषता का परिचायक है, जिसको हटाना आवश्यक है। (ग) शकट-भंजन : इस प्रसंग में एक असुर शकट (छकड़े) का रूप धारण कर बाल कृष्ण को मारने आता है। उत्सव के दिन यशोदा कृष्ण को छकड़े के नीचे शय्या पर सुला देती है। उस समय कृष्ण रोते-रोते अपना पाँव छकड़े में मारते हैं। श्री कृष्ण के पाँव लगते ही यह विशाल छकड़ा उलट जाता है। इस प्रकार श्री कृष्ण की लातों से उस असुर का संहार हो जाता है। सूरसागर के इस प्रसंग में शकटासुर द्वारा किये गये अहकार का वर्णन आता है। उसकी बात को सुनकर कंस अत्यन्त हर्षित होकर कृष्ण को मारने का बीड़ा उसे देता है। बीड़ा लेकर वह गर्व के साथ शकट का रूप धारण कर बालकृष्ण को मारने ब्रज में आता है। उसे देखकर ब्रज के लोग अत्यन्त चलित होकर डर जाते हैं परन्तु कृष्ण की एक लात से ही उसका संहार हो जाता है। पान लै चल्यौ नृप आन कीन्हौ। गयो सिर नारू मन गरबहि बढ़ाइ कै, सकट को रूपधरि असुर लीन्हौ। सुनत घहरानि ब्रजलोग चकित भए, कहा आघात धुनि करत आवै। नैंकु फटक्यौ लात, सबद भयौ आघात, गिरयौ भहरात सकटा सँहारयौ। सूर प्रभु नंदलाल, मारयौ दनुज ख्याल, मेटि जंजाल ब्रजज़न उबारयौ॥२२ 1266
SR No.004299
Book TitleJinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayram Vaishnav
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2003
Total Pages412
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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