________________ हरिवंशपुराण में कृष्ण की बाल क्रीड़ाओं का यह वर्णन इतना विस्तृत न मिलकर, अत्यन्त संक्षेप में मिलता है। जिनसेनाचार्य ने कृष्ण के नामकरण संस्कार तथा जातसंस्कार का स्पष्ट उल्लेख किया है ततो व्रजस्थः कृतजातकर्मा स्तनंधयोऽसौ कृतकृष्णनामा। प्रवर्धते नन्दयशोदयोस्तु प्रवर्धयन् प्रीतिमभूतपूर्वाम्॥१४३५/३४ उनके अनुसार "श्री कृष्ण की बाललीलाओं" से सम्पूर्ण ब्रजवासियों की प्रसन्नता तथा उनके आनन्द में वृद्धि होती थी। उसकी क्रीड़ाएँ असीम, अभूतपूर्व प्रीति को बढ़ाने वाली थीं। समीक्षा : उपर्युक्त प्रकार से हरिवंशपुराण तथा सूरसागर दोनों ग्रन्थों में श्री कृष्ण के बाल सुलभ लीलाओं का निरूपण मिलता है। सूरसागर में जहाँ श्री कृष्ण के बाल जीवन की अनेक मनोहारिणी चेष्टाओं का वर्णन हुआ है। वहाँ हरिवंशपुराण में मात्र कथा-वर्णन के निर्वाह की दृष्टि से इन्हें चित्रित किया है। सूर का यह सौन्दर्य-वर्णन शब्दों से परे है, जिसमें उन्हें पूर्ण सफलता मिली है। उनका यह वर्णन हृदयग्राही बन पड़ा है। उन्होंने श्री कृष्ण के बालजीवन के सूक्ष्म से सूक्ष्म मनोवेगों का अतुलनीय वर्णन किया है। सूरसागर में श्री कृष्ण के बाल-जीवन का क्रमिक विकास दिखाई देता है जो यथार्थ तथा मनोवैज्ञानिक धरातल को पकड़े हुए है। सूरदास ने बाल-कृष्ण के वर्णन में मधुरता का सविशेष उल्लेख किया है जबकि जिनसेनाचार्य में इसका नितान्त अभाव रहा है। जिनसेनाचार्य ने श्री कृष्ण की अलौकिक शक्तियों के निरूपण में ही अपने मन को रमाया है, जिनका हम आगे उल्लेख करेंगे। श्री कृष्ण का चन्द्रप्रस्ताव :- श्री कृष्ण की बालचेष्टाओं में सूरसागर का यह प्रसंग प्रसिद्ध रहा है कि जब बालक कृष्ण रुदन कर रहा होता है, उस समय माँ यशोदा उसे शांत करने के लिए चन्द्र को दिखाती है। बालकृष्ण चन्द्र को कोई मीठी वस्तु समझ कर उसे खाने की इच्छा प्रकट करते हैं तथा तदुपरान्त उसे कोई सुन्दर खिलौना समझकर उसे प्राप्त करने के लिए हठ करने लगते हैं। माँ उन्हें शांत करने के लिए अनेक प्रयास करती है परन्तु बालकृण अपनी हठ को छोड़ते नहीं हैं। अन्त में माँ कृष्ण से कहती है कि कन्हैया! तेरे से ही यह चन्द्र दूर-दूर भागा जा रहा है। तत्पश्चात् जल में चन्द्रमा का प्रतिबिम्ब देखकर माता उसे दिखाकर कृष्ण को चुप करने का प्रयास करती है परन्तु कृष्ण माँ की इस चाल को जान जाते हैं तथा वे कहते हैं कि जल के भीतर के चन्द्र को मैं कैसे प्राप्त करूँगा। मुझे तो वे चन्द्र चाहिए, जो आकाश में चमक रहा है। सूर का यह पद देखिये, जिसमें इसी भाव का चित्रण है - - - -