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________________ होता है। इसके बाद इसमें "सार" और "सरसी" नाम के 1107 छन्द हैं। पूर्ण ब्रह्म प्रकट पुरुषोत्तम के नित्यविहार का उल्लेख करने के बाद कवि ने होली के रूप में सृष्टि रचना का वर्णन किया है। सूर सारावली के प्रतिपाद्य का वर्गीकरण निम्न प्रकार से किया जा सकता है(क) ब्रह्म का नित्य विहार :-ब्रह्म का रूप, वृन्दावन का रूप, राधा और कृष्ण का विहार। (ख) सृष्टि-विस्तार :-ब्रह्म की उत्पत्ति, ब्रह्मा द्वारा सृष्टि रचना, देवासुर संग्राम (ग) चौबीस अवतार :-वाराह, सनकादि, यज्ञपुरुष, कपिल, दत्तात्रेय, नर-नारायण, हरि, हंस, पृथु, ऋषभदेव, हयग्रीव, मत्स्य, कूर्म, नृसिंह, नारद, मनु, धन्वन्तरि, परशुराम, राम, व्यास, कल्कि, वामन एवं कृष्ण अवतार। (घ) श्रीराम-चरित्र :-बाल-चरित्र विश्वामित्र की यज्ञ-रक्षा, रामसीता-विवाह, परशुरामसंवाद, अयोध्या गमन, राम-वनवास, सीताहरण, सीता की खोज, लंका-विजय तथा रामराज्य। (ङ) श्रीकृष्ण-चरित्र :-जन्म, मथुरा से गोकुल गमन, कंस द्वारा बालिकावध, गोकुल में जन्मोत्सव, पूतनावध, तृणावर्त-वध, नामकरण-संस्कार, कागासूर-वध, बाल-लीला, ऊखल बन्धन, गोकुल से प्रस्थान, ब्रह्मा का मोह, विविध लीलाएँ, कंस का निमंत्रण, मल्लयुद्ध, कंसवध, उग्रसेन को राज्य, गुरुकुलशिक्षा, मथुरा से आने पर ब्रज की स्मृति, उद्धव का ब्रजगमन, उद्धव गोपी संवाद, उद्धव का प्रत्यागमन, जरासंध का मथुरा पर आक्रमण, मुचुकुन्द की कथा, पर्वतदाह, रुक्मिणी से विवाह, अन्य विवाह, गृहस्थ जीवन, प्रद्युम्न और अनिरुद्ध का जन्म, कुरुक्षेत्र स्नान तथा ब्रजवासियों से भेंट, युधिष्ठिर का राजसूय यज्ञ, शिशुपालवध, दुर्योधन-भ्रम, द्यूतक्रीड़ा, द्रौपदी का अपमान, दूत कार्य, महाभारत का युद्ध तथा भीष्म-प्रतिज्ञा, अन्य लीलाएँ, सुदामा लीला, राजा नृग की कथा, बलदेव का ब्रज आगमन, बलदेव की तीर्थ यात्रा, भूमा पर कृपा तथा बज्रवास की स्मृति। (च) राधा-कृष्ण का नित्य विहार :-ब्रज की निकुंजलीला, दानलीला, मानलीला, दृष्टकूट कृष्ण विहारलीला, रागरागिनी वर्णन, नित्य विहार, वसन्त खेल (दैनिक क्रम से), होलिकात्सव, वाद्य-वर्णन, होली खेल का शेषांश, वनविहार तथा कृष्ण-चरित्र की परम्परा।६१ इस पर विस्तार से दष्टि डाली जाय तो ऐसा प्रतीत होता है कि इस कृति का वर्ण्य-विषय सूरसागर के जैसा ही है, केवल आकार में अन्तर है। सूरसागर का विस्तृत वर्णन, सारावली में संक्षेप में प्रस्तुत किया गया है। कई आलोचक इसी कारण इसे सूरसागर का सूचीपत्र मानते हैं; परन्तु वास्तव में ऐसा नहीं है। सारावली एक स्वतंत्र रचना है। कवि ने इसमें चौबीस अवतारों का उल्लेख करते हुए रामावतार का विस्तृत - -
SR No.004299
Book TitleJinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayram Vaishnav
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2003
Total Pages412
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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