________________ संग्रह मात्र है। डॉ० दीनदयाल गुप्त ने सूरसागर, सारावली तथा साहित्यलहरी इन तीनों ग्रन्थों को ही सूरदास कृत माना है। प्राणप्यारी को संदिग्ध तथा नल-दमयन्ती, हरिवंशटीका, रामजन्म तथा एकादशी महात्म्य इन चारों कृतियों को उन्होंने अप्रामाणिक माना है। शेष 16 कृतियों को डॉ० गुप्त ने सूरसागर तथा साहित्यलहरी का ही अंश माना है तथा उन्हें प्रामाणिक बताया है। दृष्टिकूट ग्रन्थ का उल्लेख डॉ० गुप्त ने नहीं किया है। सूरनिर्णयकार श्री द्वारकादास पारीख तथा प्रभुदयाल "मित्तल" ने सूरसाठी-सूर पच्चीसी, सेवाफल और "सूरदास के विनय आदि के स्फूट पद" नामक ग्रन्थ की सूरदास की रचनाएँ होने का स्वीकार किया है। इन लेखकों ने इन कृतियों का जो परिचय दिया है, वह निम्न प्रकार है(१) सूरसाठी : "वार्ता" के अनुसार सूरदास ने इसकी रचना एक बनिये के लिए की थी। अतः यह एक स्वतंत्र रचना है सूरसागर में जिन स्थान पर यह प्राप्त होती है, वहाँ इसकी असंगति स्पष्ट दृष्टिगोचर होती है। (2) सूर-पच्चीसी : "वार्ता" के अनुसार इसकी रचना सूरदास से अकबर की भेंट के समय हुई थी, अतः यह भी स्वतंत्र रचना है। (3) सेवाफल :- . . . महाप्रभु वल्लभाचार्यजी के संस्कृत ग्रन्थ 'सेवाफल' के विवरण स्वरूप सूरदास ने इसकी रचना की थी। महाप्रभुजी ने अपने सेवाफल विवरण नामक ग्रन्थ में कहा है * "सेवायां फलत्रयम्। अलौकिकसामर्थ्य, सायुज्यं सेवोपयोगिर्दैहो वा वैकुंठादिषु।" सूरदास रचित "सेवाफल" में भी "वैकुंठादिषु" का विशेषतः स्पष्ट उल्लेख होने से यह भी एक स्वतंत्र रचना है। (4) सूरदास के पद :- इसमें सूर के स्फुट पदों का संग्रह है। सूरदास ने मन्दिर में प्रार्थना आदि के रूप में तथा कतिपय व्यक्तियों को वैराग्य आदि का उपदेश देते हुए छोटे-छोटे पदों की रचना की थी, उन सब का समावेश इसमें हो जाता है। ... कतिपय विद्वानों के अतिरिक्त सभी सूर-साहित्य के आलोचकों ने सूरसारावली, साहित्यलहरी तथा सूरसागर को ही सूर-कृत प्रामाणिक रचनाओं के रूप में स्वीकार किया है। अतः इन कृतियों के विषय में ही विस्तारपूर्वक विचार करना परमावश्यक है।