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________________ जैनधर्म के सम्प्रवास : 87 इस गच्छ का उल्लेख 1456 ई० और 1468 ई० के एक-एक तथा 1470 ई० के दो प्रतिमालेखों-इस प्रकार कुल 4 लेखों में उपलब्ध होता है।' इस गच्छ के संदर्भ में भी कोई विशेष जानकारी उपलब्ध नहीं है। 56. बृहद्गच्छे जिनेरावंटके: वृहद्गच्छ की इस शाखा का एक मात्र उल्लेख 1456 ई० के एक अभिलेख में मिलता है। अन्य कोई अभिलेखोय एवं साहित्यिक साक्ष्य उपलब्ध नहीं होने के कारण इस गच्छ की उत्पत्ति एवं मान्यता संबंधी सभी प्रश्न अनुत्तरित हैं। 57. भीनमाल गच्छ : भीनमाल से उत्पन्न इस गच्छ का उल्लेख 1456 ई० के एक मात्र अभिलेख में मिलता है। इस गच्छ के संदर्भ में भी अन्य कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है। 58. विमल गछ: 1460 ई० के एक मूर्तिलेख में इस गच्छ का नामोल्लेख मात्र उपलब्ध होता है। इस गच्छ सि सम्बन्धित और कोई विवरण उपलब्ध नहीं है। 59. वहगच्छे जीरापल्ली गच्छ : ____१५वीं शताब्दी के लगभग वृहद्गच्छ से कई शाखाएं विकसित हुई थीं, उन्हीं में से एक शाखा वृहद्गच्छे जीरापल्ली गच्छ भी थी। 1462 ई० के एक अभिलेख में इस गच्छ का नामोल्लेख उपलब्ध होता है।" इस गच्छ से सम्बन्धित अन्य जानकारियाँ अज्ञात हैं। 60. विद्याधरगच्छ : * विद्याधर . कुल से उत्पन्न इस गच्छ का नामोल्लेख 1463 ई० के एक अभिलेख में मिलता है। अन्य कोई अभिलेखीय एवं साहित्यिक 1. जैन लेख संग्रह, क्रमांक 532, 657, 684, 685 2. प्रतिष्ठा लेख संग्रह, क्रमांक 514 3. वही, क्रमांक 509 4. श्री जैन प्रतिमा लेख संग्रह, क्रमांक 359 5. प्रतिष्ठा लेख संग्रह, क्रमांक 594 6. बही, क्रमांक 608
SR No.004297
Book TitleJain Dharm ke Sampraday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1994
Total Pages258
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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