________________ * 86 : जैनधर्म के सम्प्रदाय लेखों से यही प्रतिफलित होता है कि जिस किसी आचार्य ने इस गच्छ की उत्पत्ति की होगी, संभवतः उनके देहावसान के साथ ही यह गच्छ अन्य गच्छों में विलीन हो गया होगा। अधिकांश गच्छों की तरह इस गच्छ. से संबंधित अन्य कोई भी जानकारी ज्ञात नहीं होती है / 52. सैद्धांतिक गच्छ : 1444 ई० से 1541 ई० तक के 7 मूर्तिलेखों में इस गच्छ का उल्लेख उपलब्ध होता है।' साहित्यिक साक्ष्यों को अनुपलब्धता तथा उपलब्ध मतिलेखों में इस गच्छ के नामोल्लेख के अलावा अन्य कोई जानकारी नहीं मिलती है। अतः इस गच्छ को उत्पत्ति कब, कहाँ एवं किसके द्वारा हुई तथा इनकी मान्यताएँ क्या थी? इस सन्दर्भ में कुछ नहीं कहा जा सकता है। 53. ज्ञानकल्प गच्छ : ___ इस गच्छ के सन्दर्भ में भी कोई विशेष जानकारी तो उपलब्ध नहीं होती है, किन्तु 1444 ई० के एक अभिलेख में इस गच्छ का उल्लेख मिलता है। इसो अभिलेख में किन्हीं मुनि शान्तिसूरि का नामोल्लेख उपलब्ध है। मात्र एक अभिलेख के अतिरिक्त अन्य कोई अभिलेखोय. अथवा साहित्यिक साक्ष्य उपलब्ध नहीं होने से ऐसा प्रतीत होता है कि यह गच्छ बहुत कम समय तक हो विद्यमान रहा होगा। 54. पूर्णिमापक्षेभीमपल्लोयगच्छ : १५वीं शताब्दी के लगभग पूर्णिमा गच्छ से कई शाखाएँ निकली थीं। यह गच्छ भी पूर्णिमा गच्छ की एक शाखा रही होगी। इस गच्छ का उल्लेख 1456 ई० और 1519 ई० के 2 अभिलेखों में मिलता है।' मात्र इन दो अभिलेखों को उपलब्धता से ऐसा लगता है कि यह गच्छ. एक शताब्दी तक भी अस्तित्व में नहीं रहा होगा। 55. पूर्णिमापक्षे कछोलीवाल गच्छ : यह गच्छ भी संभवतः पूर्णिमा गच्छ की ही एक शाखा रहो होगी। 1. (क) प्रतिष्ठा लेख संग्रह, क्रमांक 999 (ख) श्री जैन प्रतिमा लेख संग्रह, क्रमांक 4, 19, 45, 153, 212, 252 2. जैन लेख संग्रह, भाग 2, क्रमांक 1948 3. प्रतिष्ठा लेख संग्रह, क्रमांक 521, 962,