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________________ 74 : नवर्म के सम्प्रदाय साहित्यिक साक्ष्य : - इस गच्छ के ऐतिहासिक अध्ययन के लिए साहित्यिक साक्ष्य के रूप में मात्र दो प्रशस्तियां उपलब्ध हैं१. बृहत्संग्रहणीपुस्तिका को वाता प्रशस्ति : ___यह दाता प्रशस्ति 1215 ई० में लिखी गई। इसमें गोसा श्रावक को बहन पवइणी द्वारा नाणकीय गच्छ के जयदेव उपाध्याय को उक्तः. पुस्तिका की प्रतिलिपि भेंट में देने का उल्लेख मिलता है। (2) षटकर्मअवचूरि के प्रतिलेखन की वाताप्रशस्ति : ... 10 पंक्तियों में लिखित यह दाता प्रशस्ति नाणकीय गच्छ से सम्बन्धित दूसरा और अन्तिम साहित्यिक साक्ष्य है। यह प्रशस्ति 1535 ई० में लिखी गई थी। इस प्रशस्ति में इस गच्छ के चार परम्परागत आचार्योंआचार्य शांतिसूरि, सिद्धसेनसूरि, धनेश्वरसूरि और महेन्द्रसूरि का नामोल्लेख होने से इसे महत्वपूर्ण माना जा सकता है। अभिलेखीय साक्ष्य : ___ यद्यपि इस गच्छ का उल्लेख करने वाले साहित्यिक साक्ष्य की उपलब्धता बहुत कम है तथापि 1155 ई. से 1542 ई. तक के लगभग 150 अभिलेख उपलब्ध होते हैं, जिनमें इस गच्छ से सम्बन्धित जानकारी प्राप्त होती है। उपलब्ध साहित्यिक एवं अभिलेखीय साक्ष्यों का अध्ययन करने से ज्ञात होता है कि १२वीं शताब्दी में अस्तित्व में आया यह गच्छ १६वीं शताब्दी के मध्य तक विद्यमान रहा। १६वीं शताब्दी के बाद का ऐसा कोई साक्ष्य उपलब्ध नहीं है, जिसमें इस गच्छ का उल्लेख हुआ हो। इस आधार पर यह कहा जा सकता है कि १६वीं शताब्दी के पश्चात् इस गच्छ के अनुयायी अन्य गच्छों में सम्मिलित हो गए होंगे। 19. जलयोधर गच्छ : जोराउद्र गांव में उत्पन्न इस गच्छ का उल्लेख 2156 ई० से 1366 ई० तक के प्रतिमा लेखों में उपलब्ध होता है / इस गच्छ से सम्बद्ध 1. डॉ० शिवप्रसाद-नाणकीय गच्छ, श्रमण, मई 1989, पृ० 2-1 2. वही, पृ० 6-30 3. डॉ. शिवप्रसाद-जालिहर गच्छ का संक्षिप्त इतिहास; धमण, वर्ष 43, अंक 4-6, पृ० 41-46
SR No.004297
Book TitleJain Dharm ke Sampraday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1994
Total Pages258
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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