________________ जैनधर्म के सम्प्रदाय : 73 रहा होगा। इस गच्छ की उत्पत्ति कब, कहाँ एवं किसके द्वारा हुई तथा इनकी मान्यताएँ क्या थी? इत्यादि प्रश्नों के उत्तर साक्ष्यों के अभाव में अनुत्तरित हैं। 16. रूद्रपल्लीयगच्छ यह गच्छ खरतरगच्छ को एक शाखा है। रूद्रपल्लो नामक स्थान "पर 1147 ई० में जिनेश्वरसूरि के द्वारा इस गच्छ की उत्पत्ति हुई। 1147 ई० से 1496 ई. तक के 10 प्रतिमालेखों में इस गच्छ का उल्लेख मिलता है। इन प्रतिमालेखों से ज्ञात होता है कि इस गच्छ में देवसुन्दरसूरि, सोमसुन्दरसूरि, गगसमुद्रसूरि, हर्षदेवसूरि, हर्ष सुन्दरसूरि आदि कई आचार्य हुए हैं / श्री अगरचन्द नाहटा के अनुसार वि० सं० को १७वीं शती तक इस गच्छ का अस्तित्व था। 17. पिशपालाचार्यगच्छ : इस गच्छ की उत्पत्ति आचार्य पिशपाल के नाम से हुई है / ११५१ई० के एक प्रतिमा लेख में इस गच्छ का नामोल्लेख मिलता है। इस गच्छ के सन्दर्भ में और अधिक जानकारी उपलब्ध नहीं होती है / 18. नाणकीय गच्छ : श्वेताम्बर सम्प्रदाय के चैत्यवासी गच्छों में नाणकीय गच्छ प्रमुख रहा है। यह गच्छ १२वीं शताब्दी के लगभग अस्तित्व में आया। इस गच्छ की उत्पत्ति 'नाणा' नामक प्राचीन तीर्थ से हुई थी। इस गच्छ का उल्लेख मूर्तिलेखों में नाणकीय एवं ज्ञानकीय दोनों नामों से मिलता है। इसके अलावा इस गच्छ के नाणगच्छ, नाणागच्छ और नाणावालगच्छ आदि नाम भी मिलते हैं। . नाणकोय गच्छ के ऐतिहासिक अध्ययन के लिए साहित्यिक एवं अभिलेखोय दोनों ही साक्ष्य उपलब्ध हैं। 1. प्रतिष्ठा लेख संग्रह, परिशिष्ट 2, पृष्ठ 227 . 2. नाहटा, अगरचन्द-पल्लीवालगच्छ पट्टावलो-श्री आत्मारामजी शताब्दी ग्रन्थ, पृष्ठ 155-156 . 3. Jainism in Rajasthan p. 62 4. (क) प्रतिष्ठालेख संग्रह, क्रमांक 68, 89, 139, 301 : (ख) वहीं, क्रमांक 349, 381, 467, 519, 671, 697, 779, 832, 842, 874, 914