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________________ . 66 : जैनधर्म के सम्प्रदाय वृक्ष के नीचे आचार्य उद्योतनसूरि ने सर्वदेवसूरि सहित आठ मुनियों को आचार्य पद प्रदान किया था। वट वृक्ष के नीचे इस गच्छ को आचार्य पद प्रदान किए जाने के कारण ही यह गच्छ वडगच्छ के रूप में पहचाना जाने लगा / सर्वदेवसूरि वडगच्छ के प्रथम आचार्य हुए। बृहद्गच्छ नाम इसी वडगच्छ का कालक्रमानुसार परिवर्तित नाम है। कालान्तर में बृहद्गच्छ से भी अनेक शाखाओं एवं उपशाखाओं का आविर्भाव हुआ, किन्तु वर्तमान समय में यह गच्छ अस्तित्व में नहीं है। 2. संडेरगच्छ : संडेरगच्छ १०वीं शताब्दी के लगभग संडेर (वर्तमान सांडेराव ) से अस्तित्व में आया। इस गच्छ का सबसे प्राचीन अभिलेख 992 ई० का है।' 1147 ई० से 1531 ई. तक के लगभग 40 मूर्तिलेखों में इस गच्छ का तथा इसके प्रभावक आचार्यों का भी उल्लेख मिलता है। ज्ञातव्य है कि भण्डारी गोत्र के पूर्वज द्रदराव ने संडेरगच्छ के यशोभद्रसूरि से ही जैन धर्म अंगीकार किया था। इस गच्छ के प्रथम आचार्य ईश्वरसूरि माने जाते हैं। उनकी शिष्य परंपरा में यशोभद्रसूरि, शालिसूरि, सुमतिसूरि, शांतिसूरि और ईश्वरसूरि (द्वितीय ) आदि प्रभावक आचार्यों के नामों का उल्लेख मिलता है। इस गच्छ में गच्छनायक आचार्यों को ये हो पांच परम्परागत नाम क्रमशः दिये जाते थे, शेष मुनियों के नाम तो जीवन पर्यन्त वे ही बने रहते थे, जो उन्हें दीक्षा के समय दिये जाते थे।" साहित्यिक साक्ष्य के रूप में 1228 ई० से 1593 ई. तक की इस गच्छ को निम्न 6 दाता प्रशस्तियाँ उपलब्ध हैं। जिनमें इस गच्छ के आचार्यों तथा उनके द्वारा रचित साहित्य की जानकारी मिलती है 1. नाहर, पुरनचन्द-जैन लेख संग्रह, भाग 2, लेख क्रमांक 1944 2. (क) लोड़ा, दौलतसिंह-श्री जैन प्रतिमा लेख संग्रह, क्रमांक 173, 208 (ख) विनयसागर-प्रतिष्ठा लेख संग्रह, परिशिष्ट 2, पृ० 228 3. जैन, श्रीमती) डॉ. राजेश-मध्यकालीन राजस्थान में जैन धर्म, पृ० 137 4. डॉ. शिवप्रसाद-संडेरगच्छ का इतिहास; ca-Aspects of Jainology, Vol. 3, P. 194 5. वही, पृष्ठ 197 6. वही, पृष्ठ 194-197
SR No.004297
Book TitleJain Dharm ke Sampraday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1994
Total Pages258
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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