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________________ जैनधर्म के सम्प्रदाय : 61 यापनीय सम्प्रदाय के बारे में श्री अगरचन्द नाहटा लिखते हैं कि कई शताब्दियों तक अस्तित्व में रहने के पश्चात् यापनीय सम्प्रदाय लुप्त हो गया। अब इनके द्वारा मान्य जैन आगम आदि भी उपलब्ध नहीं होते हैं। इनके कुछ ग्रन्थों को दिगम्बरों ने अपना लिया तो कुछ ग्रन्थों को श्वेतांबरों ने अपना लिया है। हमें नाहटाजी का यह कथन उचित प्रतीत नहीं होता। श्वेताम्बर परम्परा ने तो अपने पूर्वजों के ग्रन्थों को ही अपनाया है। यापनोयों के सारे ग्रन्थ शौरसेणी भाषा में हो लिखित हैं। जबकि श्वेतांबर परम्परा के मान्य सभी ग्रन्थ अर्द्धमागधी अथवा महाराष्ट्री प्राकृत में हो लिखित हैं, इसलिये श्वेताम्बर परम्परा के सन्दर्भ में नाहटाजी के इस कथन की सत्यता को स्वीकारने में आपत्ति आती है। हाँ, दिगम्बर परम्परा के सन्दर्भ में नाहटाजो के कथन को किसी सीमा तक सत्य माना जा सकता है, क्योंकि दिगम्बर परम्परा द्वारा मान्य ग्रन्थ भी शौरसेणी भाषा में ही लिखित हैं। यापनीय सम्प्रदाय को उत्पत्ति संबंधी मान्यतायें : - श्वेताम्बर परम्परा द्वारा मान्य विशेषावश्यकभाष्य और आवश्यकचूणि ( लगभग ६ठी-७वीं शताब्दी ) जैसे अति प्राचीन ग्रन्थो में उल्लिखित कथनानुसार बोटिक शिवभूति से ही यापनीय सम्प्रदाय की उत्पत्ति हुई थी। बोटिक मत एवं उससे संबंधित कथा का उल्लेख हमने पूर्व में विस्तारपूर्वक किया है, इसलिए उस कथा का उल्लेख हम पुनः यहाँ नहीं कर रहे हैं। दिगम्बर परम्परा में यापनीय सम्प्रदाय की उत्पत्ति का उल्लेख करने वाले दो कथानक उपलब्ध होते हैं। पहला-आचार्य देवसेन अपने ग्रन्थ दर्शनसार (लगभग १०वीं शताब्दी) में यापनीय सम्प्रदाय की उत्पत्ति का उल्लेख करते हुए लिखते हैं कि श्रीकलश नामक श्वेताम्बर साधु ने वि० सं० 205 में यापनीय संघ प्रारम्भ किया था। दूसरा कथानक * रत्ननन्दी के भद्रबाहुचरित (ईसा को लगभग १५वीं शताब्दी) में उपलब्ध होता है। उसमें यापनीयों की उत्पत्ति के बारे में लिखा है कि करहाटक 1. जन एकता का प्रश्न, पृ० 38 2. कल्लाणेवरणयरे दुण्णिसए पंच-उत्तरे जादे / - जावणियसंघभावो सिरिकलसादो हु सेवडदो ॥-दर्शनसार, गाथा 29. 3. भद्रबाहुचरित, 4 / 153-154
SR No.004297
Book TitleJain Dharm ke Sampraday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1994
Total Pages258
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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