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________________ . 34 : जैनधर्म के सम्प्रदाय उसकी भी चार शाखाएँ हुई--(१) उच्चै गरी, (2) विद्याधरी, (3) वज्री और (4) माध्यमिका। इस कोटिकगण के चार कुल थे-(१). ब्रह्मलीय, (2) वस्त्रलीय, (3) वाणिज्य तथा (4) प्रश्नवाहन। . ___ स्थविर सुस्थित एवं सुप्रतिबुद्ध के पांच शिष्य हुए, उनमें से स्थविर प्रियग्रन्थ से कोटिकगण की मध्यमाशाखा निकली। स्थविर विद्याधर गोपाल से विद्याधरी शाखा निकली। स्थविर आर्य शान्ति श्रेणिक से उच्चन गरी शाखा निकली। स्थविर आर्य शान्तिश्रेणिक के चार शिष्य हए-(१) स्थविर आर्य श्रेणिक, (2) स्थविर आर्य तापस, (3) स्थविर आर्य कुबेर और (4) स्थविर आर्य ऋषिपालित / इन चारों शिष्यों से क्रमशः चार शाखाएँ निकलीं-(१) आर्य श्रेणिका, (2) आर्य तापसी, (3) आर्य कुबेरी और (4) आर्य ऋषिपालिता। स्थविर आर्य सिंहगिरि के चार शिष्य हुए-(१) स्थविर आर्य धनगिरि, (2) स्थविर आर्य वज्र (3) स्थविर आर्य सुमित और (4) स्थविर आर्य अहहत / स्थविर आर्य सुमितसूरि से ब्रह्मदीपिका तथा स्थविर आर्य वज्रस्वामी से वज्रोशाखा निकली। आर्य वज्रस्वामी के तीन शिष्य हुए(१) स्थविर आर्य वज्रसेन, (2) स्थविर आर्य पद्म और (3) स्थविर आर्यरथ / इन तीनों से क्रमशः तीन शाखाएँ निकलीं-(१) आर्य नागिला, (2) आर्य पद्मा और (3) आर्य जयन्ती। महावीर निर्वाण के पश्चात् की आचार्य परम्परा का जो उल्लेख श्वेताम्बर परम्परा मान्य ग्रन्थों में हुआ है, वह उसी रूप में दिगम्बर परम्परा को मान्य नहीं है। दिगम्बर विचारधारा को प्रस्तुत करने वाले प्राचीन ग्रन्थ तिलोयपण्णत्ति में महावीर निर्वाण के पश्चात्वर्ती आचार्यों को नामावली क्रमशः इस प्रकार उल्लिखित है-(१) गोतम, (2) सुधर्मा, (3) जम्बू, (4) विष्णु, (5) नन्दिमित्र, (6) अपराजित, (7) गोवर्द्धन, (8) भद्रबाहु (प्रथम), (9) विशाखाचार्य, (10) प्रोष्ठिल, (11) क्षत्रिय (कृतिकार्य), (12) जयसेन, (13) नागसेन, (14) सिद्धार्थ, (15) धृतसेन, (16) विजय (विजयसेन ), (17) बुद्धिलिंग, (18) देव (गंगदेव ), (19) धर्मसेन, (20) क्षत्र, (21) जयपाल, (22) पाण्डु, (23) ध्रुवसेन, (24) कंस, (25) सुभद्र, (26) यशोभद्र, (27) भद्रबाहु (द्वितीय) / तिलोयपण्णत्ति में इन आचार्यों का समय वी० नि० सं० 12 से वो० 1. तिलोयपत्ति , 4 / 1478-1504
SR No.004297
Book TitleJain Dharm ke Sampraday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1994
Total Pages258
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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