SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 34
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैनधर्म का उद्भव और विकास : 23 महावीर के समय में अन्धविश्वासों एवं पाखण्डों के साथ-साथ समाज में वर्णभेद की समस्या भी थी। एक ओर महावीर ने उस समय के प्रचलित अन्धविश्वासों और पाखण्डों को दूर करने का सफल प्रयास किया तो दूसरी ओर समाज में व्याप्त वर्णभेद को समाप्त करने का प्रशंसनीय कार्य भी उन्होंने ही किया था। महावीर का सम्पूर्ण जीवन अदम्य साहस, तप-त्याग और साधना से ओत-प्रोत रहा है। विविध जैन ग्रन्थों में ऐसे अनेक दृष्टान्त देखने को मिलते हैं जिनसे महावीर के विशिष्ट व्यक्तित्व का बोध होता है। महावीरकालीन जैनधर्म : ___ महावीर के समय में जैनधर्म की क्या स्थिति थी? इस पर चर्चा करने से पहले यह जानना आवश्यक है कि उस समय की सामाजिक एवं सांस्कृतिक स्थिति क्या थी? क्योंकि कोई भी धर्म अपने समय को सामाजिक एवं सांस्कृतिक स्थितियों से प्रभावित हुए बिना नहीं रहता है। महावीर के समय भारतीय समाज पर श्रमण परम्परा के साथ-साथ ब्राह्मण परम्परा का भो व्यापक प्रभाव था। उस काल में यज्ञ, हवन आदि धार्मिक अनुष्ठान होते रहते थे, जिनमें पशुबलि ही नहीं नरबलि तक भी दी जाती थी। समाज में बहुपत्नोप्रथा' तथा दहेजप्रथा जैसी अनेक सामाजिक कुरीतियाँ एवं मानवीय स्वभावगत दुर्बलताएं चरम सीमा पर थीं। मानववृत्ति तप-त्याग से हटकर भौतिक सुख-सुविधाओं में ही आनन्द का अनुभव कर रही थी। ऐसे समय में महावीर पर यह दायित्व आया कि एक ओर तो वे इन कुप्रथाओं का निराकरण करें और दूसरी ओर वे ऐसे सिद्धान्तों का प्रतिपादन करें जिससे यह सम्भव हो सके कि व्यक्ति भौतिक सुख-सुविधाओं से विलग रहकर त्यागमय साधनापूर्ण जीवन शैली द्वारा अधिकाधिक आत्मशान्ति अजित कर सके। - महावीर ने अपनी समसामयिक परिस्थितियों को देखकर समाज में प्रचलित कुप्रथाओं को समाप्त करने के लिए उस समय की जनभाषा (प्राकृत ) में अपना उपदेश दिया। उन्होंने ऋषभदेव की दुर्धर साधना, अरिष्टनेमि की अहिंसा एवं करुणा तथा पार्श्वनाथ की विवेकशीलता को अपने आचार-दर्शन का आधार बनाया। एक ओर जहाँ उन्होंने अपने 1. उवासगदसाओ, 7 / 233 3. वही, 8234
SR No.004297
Book TitleJain Dharm ke Sampraday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1994
Total Pages258
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy