SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 219
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 208 : जैनधर्म के सम्प्रदाय तीन गुणवत एवं अतिचार : पाँच अणुव्रत श्रावक के मलव्रत हैं। अणुव्रतों के पश्चात् श्रावक तीन गुणव्रत और चार शिक्षाव्रत धारण करता है। इन सात व्रतों को आचार्य अमृतचन्द्र ने 'शीलवत' कहा है। उनका कहना है कि जैसे परकोटे नगर की रक्षा करते हैं वैसे हो शोलवत अणुव्रतों की रक्षा करते हैं।' पं० आशाधर ने सागार धर्मामृत में कहा है कि जो अणुव्रतों में विशुद्धि लाने वाले हों तथा जो अणुव्रतों के उपकारक हों, उन्हें गुणव्रत कहते हैं। उपासकदशांगसूत्र में बारह प्रकार का अगार धर्म बतलाते हुए: पाँच अणुव्रत, तीन गुणव्रत और चार शिक्षाव्रत का उल्लेख हुआ है।' इसी ग्रन्थ में श्रावक धर्म की प्ररूपणा करते हुए गुणवतों और शिक्षावतों को संयुक्त रूप से सात शिक्षाव्रत भी कहा है। रत्नकरण्डकश्रावकाचार में कहा है-दिग्वत, अनर्थदण्डव्रत और भोगोपभोगपरिमाणवत अष्ट मूल, गुणों में वृद्धि करते हैं इसलिए इनको गुणव्रत कहते हैं / " गुणवतों का संक्षिप्त विवेचन इस प्रकार है- . 1. विग्वत: अधिकांश आचार्यों ने दिग्वत को गुणव्रत माना है। श्रावकाचार का प्रतिपादन करने वाले प्रमुख श्वेताम्बर ग्रन्थ उपासकदशांगसूत्र में 1. "परिचय इव नगराणि व्रतानि किल पालयन्ति शीलानि / " -पुरुषार्थसिद्धयुपाय, 136 2. “यद्गुणायोपकारायाणुव्रतानां व्रतानि तत् / " -सागार धर्मामृत, 51 3. "अगार धम्म दुवालसविहं आइक्खइ, तं जहा-पंच अणुब्बयाई, तिणि गुणव्वयाई, चत्तारि सिक्खावयाई।" -उवासगदसाओ, 1111 4. "अत्थेगइया पंचाणुष्वइयं सत्तसिक्खावइयं दुवालसविहं गिहिधम्म पडिवण्णा।" -उवासगदसाओ, 1111 5. "दिग्वतमनर्थदण्डवतं च, भोगोपभोग-परिमाणं। अनुवृंहणाद् गुणानामाख्यान्ति गुणव्रतान्यार्याः॥" -रत्नकरण्डकथावकाचार, श्लोक 321
SR No.004297
Book TitleJain Dharm ke Sampraday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1994
Total Pages258
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy