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________________ विभिन्न सम्प्रदायों को श्रावकाचार संबंधी मान्यताएं : 207 संकल्प लेता है। विविध प्रन्थों में ऐसा उल्लेख है कि इस व्रत को धारण करने वाला श्रावक खेत, वस्तु, धन-धान्य, सोना, चांदी, द्विपद, चतुष्पक, गृहसामग्री आदि की सीमा निर्धारित कर लेता है।' - अतिचार: अन्य व्रतों की तरह इच्छाविधि परिमाण व्रत के भो पांच अतिचार बतलाए गए हैं / उपासकदशांगसूत्र में क्षेत्रवस्तु-प्रमाण अतिक्रम, हिरण्य. स्वर्ण-प्रमाण अतिक्रम, द्विपद चतुष्पद-प्रमाण अतिक्रम, धन-धान्य प्रमाण अतिक्रम और कुप्य-प्रमाण अतिक्रम को इस व्रत के अतिचार माने हैं। -तत्त्वार्थसूत्र में द्विपद-चतुष्पद प्रमाण अतिक्रम नहीं कहकर दासो-दास प्रमाण अतिक्रम कहा गया है। रत्नकरण्डकश्रावकाचार में अतिवाहन, अतिसंग्रह, विस्मय, लोभ और अतिभार वाहन को इस व्रत के अतिचार माने हैं। सागारधर्मामृत में वास्तु-क्षेत्र अतिचार, धन-धान्य-बन्धन . अतिचार, कनक-रूप्य दान अतिचार, कुप्य भाव अतिचार और गवादी गर्भतातिचार-ये पांच अतिचार अपरिग्रह अणुव्रत के बतलाए हैं।" श्रावक अपनी, शक्ति एवं सामर्थ्य के अनुसार दो करण, तीन योग से अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह रूप-इन पांच अणुव्रतों का पालन करता है। अहिंसा अणुव्रत का पालन करते हुए श्रावक स्थूल "हिसा का, सत्य अणुव्रत का पालन करते हुए स्थूल असत्य का, अस्तेय अणुव्रत का पालन करते हुए स्थूल चोरी का, ब्रह्मचर्य अणुव्रत का पालन करते हुए स्थूल अब्रह्मचर्य का तथा अपरिग्रह अणुव्रत का पालन करते हुए परिग्रह का परिमाण करता है। प्रत्येक अणुव्रत के जो पांच-पांच अतिचार बतलाए गए हैं, विवेकी श्रावक उनको ध्यान में रखता है ताकि अनभिज्ञता में भी उसके किसी व्रत में स्खलना न आ जाए। 1. (क) उवासगदसाओ 1149 (ख) रत्नकरण्डकश्रावकाचार, श्लोक 315 (ग) अमितगतिश्रावकाचार, 673 2. "तयाणंतरं च णं इच्छा-परिमाणस्स समणोवासएणं पंच अइयारा जाणियव्वा, न समारियम्वा / तं जहा-खेत्त-वत्थुपमाणाइक्कमे, हिरण्ण-सुवण्णपमाणाइक्कमे, दुपय-चउप्पय- पमाणाइक्कमे, घणधान्नपमाणाइक्कमे, कुवियपमाणाइक्कमे / " -उवासगदसाओ, 1149 3. तत्त्वार्थसूत्र, 7 / 24 4. रत्नकरण्डकभावकाचार, श्लोक 3316 *5. सागारधर्मामृत, 4 / 64
SR No.004297
Book TitleJain Dharm ke Sampraday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1994
Total Pages258
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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