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________________ 180. : वधर्स के सम्प्रदाय अभिग्रह पूरा होता हो, वहीं वे आहार ग्रहण करते हैं। भगवती आराधना में विविध प्रकार के अभिग्रह एवं संकल्पों का उल्लेख हुआ है।' श्वेताम्बर परंपरा के श्रमण आहार ग्रहण के लिए किसी तरह का अभिग्रह या संकल्प नहीं करते हैं। जिस प्रकार क्षुधा (भूख) शान्त करने के लिए श्रमण को भोजन को आवश्यकता रहती है उसी प्रकार तृष्णा (प्यास) शान्त करने के लिए उसे पानी की आवश्यकता होती है। श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों परंपराओं के मान्य ग्रन्थों में निर्दोष आहार के साथ पानी का भी उल्लेख हुआ है। प्रासुक पानी को धोवन पानी भी कहा जाता है। ज्ञातव्य है. कि दिगम्बर परम्परा के श्रमेण स्थितभोजन और एकभक्त व्रत करते हैं इसलिए वे पानी भी दिन में एक ही बार ग्रहण करते हैं, जबकि श्वेताम्बर परम्परा के श्रमण भोजन की तेरह पानी भी एक से अधिक बार लाते भी हैं और पीते भी हैं। श्वेताम्बर और दिगम्बर दानों परम्परानुसार श्रमण की आहारचर्या में कुछ भिन्नता होते हुए भी आहार का समय, आहार मर्यादा, आहार के प्रकार, आहार के दोष आदि अनेक बातों में दोनों परम्पराओं के श्रमणों का व्यवहार लगभग समान है। विहारः __ ऐक स्थान पर रहने से राग बढ़ता है इसलिए श्रमण नित्य विहार करते हैं। श्रमण वर्षायोग के अतिरिक्त अधिक. समय तक एक स्थान पर नहीं ठहरते हैं। श्रमण चाहे वचमयी भूमि हो, चाहे कंकड़-पत्थर से यक्त मार्ग हो, चाहे कांटों से भरा पथ हो, वे चार हाथ प्रमाण भूमि का अवलोकन करते हुए एकाग्रचित्त से ईर्यासमितिपूर्वक ग्रामानुग्राम विचरण करते हैं। दुर्गम मार्गों पर भी श्रमण नग्न पैर और पैदल ही गमन करते 1. भगवती आराधना, गाथा 218-221, 1206 2. (क) आचारांगसूत्र, 2 / 17 / 369-371 (ख) दशवकालिकसूत्र, 5 / 188-194 (ग) मूलाचार, गाथा 473 3. (क) आचारांगसूत्र, 2 / 3 / 11469 (स) उसराध्ययनसूत्र, 247 (ग) मूलाचार, गाथा 303 4. (क) आचारांगसूत्र, 1 / 9 / 1 / 267 (ख) भगवती आराधना, गाथा 152
SR No.004297
Book TitleJain Dharm ke Sampraday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1994
Total Pages258
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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