________________ 160 : जैनधर्म के सम्प्रदाय पांच इन्द्रिय-निग्रहः (6) श्रोत्रेन्द्रिय-निग्रह, (7) चक्षुरिन्द्रिय-निग्रह, (8) घ्राणेन्द्रिय-निग्रह, (9) जिह्वेन्द्रिय-निग्रह, (10) स्पर्शनेन्द्रिय-निग्रह, चार कषाय विवेक : . (11) क्रोध विवेक, (12) मान विवेक, (13) माया विवेक, (14), लोभ विवेक, तीन सत्य: (15) भाव सत्य, (16) करण सत्य, (17) योग सत्य, शेष मूलगुण : (18) क्षमा, (19) विरागता, (20) मन समाधारणता, (21) वचन समाधारणता, (22) कायसमाधारणता, (23) ज्ञान सम्पन्नता, (24) दर्शन सम्पन्नता, (25) चारित्र सम्पन्नता, (26) वेदनातिसहनता और (27) मारणान्तिकातिसहनता। दिगम्बर परम्परानुसार श्रमण के मूलगुण : दिगम्बर परम्परानुसार श्रमण के मूलगुणों की संख्या अट्ठाईस है।' इस परम्परा के मान्य ग्रन्थ मूलाचार मे श्रमण के अट्ठाईस मूलगुण इस प्रकार उल्लिखित हैं 2 पांच महाव्रत-(१) हिंसा विरति (अहिंसा), (2) सत्य, (3) अदत्त परिवर्जन (अस्तय), (4) ब्रह्मचर्य, (5) संगविमुक्ति (अपरिग्रह), पाँच समिति-(६) ईर्या समिति, (7) भाषा समिति, (8) एषणा समिति, (9) आदान निक्षेपण समिति, (10) प्रतिष्ठापनिका समिति, पंचेन्द्रिय निरोध-(११) चक्षुरिन्द्रिय निरोध, (12) श्रोत्रेन्द्रिय निरोध, (13) घ्राणेन्द्रिय निरोध, (14) रसनेन्द्रिय निरोध, (15) स्पर्शनेन्द्रिय निरोध, 1. "पंचय महन्वयाई समिदीओ पंच जिणवरूद्दिट्ठा / पंचेबिंदयरोहा छप्पि य आवासया लोओ // आचेलकमण्हाणं खिदियसयणमदंतघंसणं चेव / ठिदि भोयणेयभत्तं मूलगुणा अट्ठवीसा दु॥" -मूलाचार, गाथा 203: 2. वही, गाथा 4, 16, 22, 29-35