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________________ 136 : जैनवर्म के सम्प्रदाय में सामान्य रूप से तो मतैक्य प्रतीत होता है, किन्तु कुछ विशेष विवरणों को लेकर दोनों परम्पराओं में मतभेद देखा जा सकता है। सबसे पहला मतभेद देवों की संख्या को लेकर है तिर्यक्लोक के नीचे अपने भवनों में निवास करने वाले देवों को भवनपति देव कहा गया है। दोनों हो परम्पराओं में निम्नानुसार दस भवनपति देव माने गये हैं-(१)असुरकुमार, (2) नागकुमार, (3). विद्युतकुमार, (4) सुपर्णकुमार, (5) अग्निकुमार, (6) वायुकुमार, (7) स्तनितकुमार, (8) उदधिकुमार, (9) द्वीपकुमार और (10) दिशाकुमार। व्यन्तरदेव ऊर्ध्व, मध्य और अधो तोनों लोकों में पहाड़ों, गुफाओं आदि के अन्तराल में निवास करते हैं / निम्न आठ प्रकार के अन्तर देवों को दोनों परम्पराओं ने समान रूप से स्वीकार किया है।-(१) किन्नर, (2) किंपुरुष, (3) महोरग, (4) गान्धर्व, (5) यक्ष, (6) राक्षस, (7) भूत और (8) पिशाच / तिर्यकलोक के ऊपर और स्वर्गलोक के नीचे अपने-अपने विमानों में रहने वाले देव ज्योतिष्क देव हैं। श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों परंपराओं ने निम्न पांच ज्योतिष्क देवों को समान रूप से स्वीकारा है(१) सूर्य, (2) चन्द्र, (3) ग्रह, (4) नक्षत्र और (5) तारागण / इन तीनों प्रकार के देवों के सम्बन्ध में दोनों परम्परायें एकमत हैं, किन्तु वैमानिक देवों को लेकर दोनों परम्पराओं में मतभेद है / श्वेताम्बर परम्परा द्वारा मान्य आगम प्रज्ञापनासूत्र तथा तत्वार्थभाष्य में निम्न 12 वैमानिक देव माने गये हैं।-(१) सौधर्म, (2) ईशान, (3) सनत्कुमार, (4) माहेन्द्र, (5) ब्रह्मलोक, (6) लान्तक, (7) महाशक, (8) सहस्रार, (9) आणत, (10) प्राणत, (11) आरण और (12) अच्युत / दिगम्बर परम्मरा के तत्त्वार्थ मान्य पाठ में निम्न 16 वैमानिकदेव माने गये हैं-(१) सौधर्म, (2) ईशान, (3) सनत्कुमार, (4) माहेन्द्र, (5) ब्रह्म, (6) ब्रह्मोत्तर, (7) लान्तक, (8) कापिष्ठ, (9) शुक्र, (10) 1. तत्त्वार्थसूत्र, 4 / 11 2. वही, 4112 3. वही, 413 4. (क) प्रशाषनासूत्र, 1144 (ख) तत्त्वार्थभाष्य, 419 5. तत्त्वार्थसूत्र, 4 / 19
SR No.004297
Book TitleJain Dharm ke Sampraday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1994
Total Pages258
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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