________________ विभिन्न सम्प्रदायों की दर्शन संबंधी मान्यताएँ : 131 (8) स्त्रीलिंगसिद्ध, (9) पुरुषलिंगसिद्ध , (10) नपुंसकलिंगसिद्ध, (11) स्व. लिंगसिद्ध, (12) अन्यलिंगसिद्ध, (13) गृहलिंगसिद्ध, (14) एकसिद्ध और (15) अनेकसिद्ध। यहाँ हम देखते हैं कि श्वेताम्बर परम्परा में स्त्रोलिंग और नपुंसकलिंग सिद्धों के साथ हो अन्यलिंग और गृहस्थलिंग भी सिद्ध माने गये हैं। तत्त्वार्थसूत्र मल में भी गति आदि की अपेक्षा से सिद्धों के अनुयोगद्वारों की चर्चा है / ' तत्त्वार्थसूत्र मूल में तो केवल इतना ही उल्लेख है कि किन-किन अपेक्षाओं से सिद्धों का विचार किया जाना चाहिये। इसलिए तत्त्वार्थमूत्र का यह मूलसूत्र तो दोनों परम्पराओं में विवादास्पद नहीं रहा है, किन्तु तत्त्वार्थभाष्य और तत्त्वार्थसूत्र की सर्वार्थसिद्धि टीका में इसको व्याख्या को लेकर स्पष्ट अन्तर देखा जा सकता है / तत्त्वार्थभाष्य स्पष्ट रूप से स्त्रीलिंग, नपुंसकलिंग, अन्यलिंग और गृहस्थलिंग सिद्धों का उल्लेख करता है। जबकि सर्वार्थसिद्धि में स्पष्ट रूप से इसका कोई उल्लेख नहीं है, इसमें कहा गया है कि द्रव्य की अपेक्षा से केवल पुरुषलिंग से ही सिद्ध हुआ जा सकता है। - यह स्पष्ट है कि श्वेताम्बर परम्परा और उसके साथ ही अचेलता की समर्थक यापनीय परम्परा भी स्त्रीलिंग, नपुंसकलिंग, अन्यलिंग और गहस्थलिंग सिद्धों की मान्यता स्वीकार करती हैं, किन्तु दिगम्बर परम्परा सिद्धों की पूर्व पर्याय की अपेक्षा से इन भेदों को स्वीकार नहीं करती है। दिगम्बर परम्परा स्पष्ट रूप से यह उद्घोषित करती है कि स्त्री, नपुंसक अन्यलिंगी तथा गृहस्थलिंगी सिद्ध नहीं हो सकते हैं। यद्यपि स्त्रीमुक्ति के प्रकरण को लेकर श्वेताम्बर और दिगम्बर परम्परा में बहुत कुछ लिखा जा चुका है। इस प्रकरण पर हम भी आगे स्वतन्त्र चर्चा करेंगे, . किन्तु नपुंसक, अन्यलिंग और गृहस्थलिंग सिद्धों के सन्दर्भ में विशेष चर्चाएं नहीं हुई हैं। इसका मूलकारण यह जान पड़ता है कि स्त्रीमुक्ति ~ का निषेध उसकी सचेलता के कारण ही किया गया था। अन्य तोन लिंग भी सचेलता से ही सम्बन्धित हैं। संभवतः इसीलिए स्त्रीमुक्ति निषेध में ही इनको भी समाहित मान लिया हो, इसी कारण इस प्रश्न पर विशेष 1. तत्त्वार्थसूत्र, 107 2. तत्त्वार्थभाष्य, 107 3. सर्वार्थसिदि 109