SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 141
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 130 : जैनधर्म के सम्प्रदाय क्षमता रखता है तथा स्वभाव से वह ऊर्ध्व गति को जाने वाला है। श्वेताम्बर आगमों में भी जीव को कर्ता एवं भोक्ता माना गया है, किन्तु.. दिगम्बर आचार्य कुन्दकुन्द का दृष्टिकोण थोड़ा भिन्न है, कुन्दकुन्द व्यवहारनय से तो जोव को कर्ता-भोक्ता मानते हैं, किन्तु निश्चयनय से उसे कर्ता-भोक्ता नहीं मानते हैं। जीव के भेद : - श्वेताम्बर और दिगम्बर परम्परा के मान्य ग्रन्थों का अध्ययन करने से ज्ञात होता है कि जीव तत्त्व के भेद दोनों परम्पराओं में भिन्न-भिन्न प्रकार से बतलाए गये हैं। सर्वप्रथम दोनों परम्पराओं ने जोव के दो भेद(१) संसारो और (2) मुक्त, समान रूप से स्वीकार किए हैं।२ कर्मबन्धन से बद्ध एक गति से दूसरो गति में जन्म और मरण करने वाले अर्थात् चतुर्गति में भ्रमण करने वाले जीव संसारो कहलाते हैं तथा कर्मक्षय के द्वारा शुद्धात्म-स्वरूप को प्राप्त जोव मुक्त कहलाते हैं। दिगम्बर मान्य.. तानुसार मुक्त अवस्था में जीव अपने शुद्ध स्वरूप में स्थित होता है इसलिए उसमें स्त्री, पुरुष तथा नपुंसक सम्बन्धो कोई भेद नहीं रहता है, संसारो जीवों में ही अनेक प्रकार के भेद पाये जाते हैं / किन्तु श्वेताम्बर परम्परानुसार जिस जीव को मुक्त होते समय जैसो पर्याय होता है, उसे उसी अवस्था में मुक्त माना जाता है। .. श्वेताम्बर मान्य आगम प्रज्ञापनासूत्र में पूर्वपर्यायों को अपेक्षा से मुक्त जीवों के ये पन्द्रह भेद माने गये हैं (1) तीर्थसिद्ध, (2) अतीर्थसिद्ध, (3) तोथंकरसिद्ध, (4) अतीर्थंकरसिद्ध, (5) स्वयंबुद्धसिद्ध, (6) प्रत्येकबुद्धसिद्ध, (7) बुद्धबोधितसिद्ध, 1. जीवो उवओगमओ अमुत्तिकत्ता सदेह परिमाणो / भोत्ता संसारत्यो सिद्धो सो विस्ससोड्ढगई // -द्रव्यसंग्रह, गाथा 2 2. (क) उत्तराध्ययनसूत्र, 36 / 48, (ख) मूलाचार, गाथा 204 (ग) तत्त्वार्थसूत्र, 2010 3. मूलाचारवृत्ति 5 / 7, उद्धृत-प्रेमी, फूलचन्द जैन-मूलाचार का समी क्षात्मक अध्ययन, पृ० 479 4. प्रज्ञापनासूत्र, 1116
SR No.004297
Book TitleJain Dharm ke Sampraday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1994
Total Pages258
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy