________________ विभिन्न सम्प्रदायों को दर्शन संबंधी मान्यताएँ : 127 मानती हैं। दोनों परंपराएँ इस सन्दर्भ में भो एकमत हैं कि पुद्गल द्रव्य अणु और स्कन्ध ऐसे दो रूपों में पाया जाता है तथा अणु ही पुद्गल की अन्तिम इकाई है / स्कन्धों का निर्माण या तो अणुओं के परस्पर संगठित होने से होता है या फिर बड़े स्कन्धों के टूटने से छोटे स्कन्धों का निर्माण होता है / जहाँ तक अणुओं के संगठित होकर स्कन्ध बनने का प्रश्न है, वहाँ दोनों परंपराओं में मतभेद पाया जाता है। दोनों परंपराएँ इस तथ्य को तो समान रूप से स्वीकार करती है कि पुद्गलों के स्निग्ध और रूक्ष ऐसे दो रूप पाये जाते हैं। फलतः यह माना गया कि स्निग्ध और रूक्ष परमाणुओं से बन्ध होता है अर्थात् स्निग्ध और रूक्ष परमाणुओं के संगठित होने से स्कन्ध का निर्माण होता है। इसी क्रम में यह प्रश्न उपस्थित हुआ कि क्या स्निग्ध और रूक्ष परमाणु ही आपस में सगंठित होकर स्कन्ध का निर्माण करेंगे अथवा स्निग्ध-स्निग्ध और रूक्ष-रूक्ष परमाणु मिलकर भी स्कन्ध का निर्माण कर सकते हैं ? इसी समस्या को लेकर श्वेताम्बर और दिगम्बर परंपरा के आचार्यों में मतभेद पाया जाता है। इसी प्रसंग में यह प्रश्न भी चचित हुआ कि क्या समान गुण वाले स्निग्ध और रुक्ष परमाणु अथवा रूक्ष-रूक्ष परमाणु बंध सकते हैं ? यदि समान गुण वाले परमाणु बंध कर सकते हैं तो क्या उनमें भी मात्रा का कोई अन्तर होता है ? इन सभी प्रश्नों को लेकर श्वेताम्बर और दिगम्बर परंपरा में अन्तर देखा जा सकता है / इस मतभेद को चर्चा पं० सुखलालजी संघवी ने भी अपने तत्त्वार्थसूत्र की व्याख्या में विस्तारपूर्वक की है।' श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों परम्पराओं द्वारा मान्य तत्त्वार्थसूत्र में पौद्गलिक बन्ध के तीन सूत्र उल्लिखित हैं। “न जघन्यगुणानाम् / गणसाम्ये सदृशानाम / द्वयधिकादिगुणानां तु / " - श्वेताम्बर और दिगम्बर परम्परा में इन तोन सूत्रों में पाठभेद तो नहीं है, किन्तु अर्थभेद है। अर्थभेद की दृष्टि से तीन मुद्दे सामने आत हैं 1. जघन्यगुण वाले अर्थात् एक अंश (degree) वाले परमाणुओं का परस्पर बन्ध होगा या नहीं? 1. तत्वार्यसूत्र, पृ० 138-14 2. तत्वापसूत्र, 523-35