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________________ 100 अगषर्म के सम्प्रदाय हो, उसे धर्म नहीं कहा जा सकता। इस प्रकार इस सम्प्रदायने हिंसा-अहिंसा के प्रश्न पर अल्प-बहुत्व का विचार नहीं करके निरपेक्ष रूप से अहिंसा की अवधारणा पर हो अधिक बल दिया। इस प्रकार यह सम्प्रदाय अहिंसा के सकारात्मक पक्ष को अस्वीकार करता है क्योंकि इनके मतानुसार इसमें किसी न किसी रूप में हिंसा और राग नीहित रहते हैं। इस सम्प्र. दाय की आचार संबन्धी मान्यताओं की चर्चा हम आगे के पृष्ठों में करेंगे। संघ व्यवस्था की दृष्टि से यह सम्प्रदाय काफी व्यवस्थित है। अनुशासन तो इनका मूल उद्घोष ही है / स्वयं आचार्य भिक्षु का लिखा हुआ यह कथन दृष्टव्य है-"सभी साधु-साध्वियां एक ही आचार्य की आज्ञा में रहें, यह परम्परा मैंने की है।' आचार्य भिक्षु द्वारा उपदिष्ट इस परम्परा का पालन तब से आज तक इस सम्प्रदाय में निर्बाध रूप से हो रहा है। ज्ञातव्य है कि बीच में नव तेरापन्थ नाम से कुछ श्रमणों ने इस सम्प्रदाय को भी विभाजित करना चाहा था, किन्तु श्रावकों ने उन्हें मान्यता नहीं दी और इस प्रकार तेरापंथ सम्प्रदाय में नव तेरापंथ विकसित नहीं हो सका। दो-चार मुनियों के अतिरिक्त नव तेरापन्थ का समाज में कोई स्थान नहीं है। तेरापन्थ सम्प्रदाय की स्थापना से लेकर वर्तमान तक 9 आचार्य हुए हैं, यथा 1) आचार्य भिक्षुजी, (2) आचार्य भारोमेलजी, (3) आचार्य ऋषिराजजी, (4) आचार्य जीतमलजी, (5) आचार्य मधवाजी, (6) आचार्य माणिकलालजी, (7) आचार्य डालचन्दजी, (8) आचार्य कालुरामजी और (9) वर्तमान आचार्य तुलसीजी। इस सम्प्रदाय में वर्तमान में लगभग 700 संत-सतियाँ जी हैं। दिगम्बर परम्परा के उपसम्प्रदाय : अचेल परम्परा के पोषक पूर्णतः निर्वस्त्र रहने वाले साधु दिगम्बर कहलाते हैं। सम्प्रदाय विभाजन की प्रक्रिया को दिगम्बर परम्परा को भी स्वीकारना ही पड़ा है। श्वेताम्बर परम्परा की तरह दिगम्बर परम्परा में भी मूर्तिपूजक एवं अमूर्तिपूजक दोनों ही मान्यताओं के संप्रदाय विक१. (क) लिखित, 1832 (ख) जय अनुशासन, श्लोक 644; उद्धृत-भिक्षु विषार दर्शन, पृष्ठ 130
SR No.004297
Book TitleJain Dharm ke Sampraday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1994
Total Pages258
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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