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________________ जैनधर्म के सम्प्रदाय : 99 दाय, (3) दरियापुरी आठ कोटी सम्प्रदाय, (4) लिम्बडी संघवी (गोपाल) सम्प्रदाय, (5) कच्छ आठ कोटी मोटा पक्ष सम्प्रदाय, (6) कच्छ आठ कोटी छोटा पक्ष सम्प्रदाय, (7) संभात सम्प्रदाय, (8) बोटाद संप्रदाय, (9) गोंडल संघाणी संप्रदाय, (10) बरवाला सम्प्रदाय, (11) सायला सम्प्रदाय / (12) हालारी संप्रदाय और (13) वर्धमान संप्रदाय / वहद् गुजरात सम्प्रदायों में गोंडल मोटा पक्ष संप्रदाय तथा लिम्बडी मोटा पक्ष सम्प्रदाय के साधु-साध्वियों की संख्या ही अधिक है। अधिकांश सम्प्रदायों के साधु-साध्वियों की संख्या तो अत्यल्प ही है। वर्तमान समय में वृहद् गुजरात सम्प्रदाय के सभी सम्प्रदायों के कुल साधु-साध्वो लगभग 1100 हैं। श्वेताम्बर तेरापन्थ सम्प्रदाय श्वेताम्बर परम्परा में तेरापंथ सम्प्रदाय की स्थापना ई० सन् 1760 में आचार्य भिक्ष के द्वारा हुई थी।' तेरापंथ सम्प्रदाय के संस्थापक आचार्य भिक्षु स्वामी स्वयं स्थानकवासो परम्परा में ई० सन् 1751 में दीक्षित हुए थे, किन्तु 9 वर्ष पश्चात् आचार एवं विचार संबंधी मतभेदों के कारण वे इस परंपरा से अलग हुए और उन्होंने तेरापन्थ नाम से एक पथक संप्रदाय की स्थापना की। तेरापंथ संप्रदाय के उद्भव के प्रथम दिन ही आचार्य भिक्षु ने नये सिरे से महाव्रत ग्रहण किये थे, इस प्रकार उनकी नवीन दीक्षा के साथ ही तेरापंथ का प्रवर्तन हुआ था। ... आचार्य भिक्षु ने तेरापंथ की सैद्धान्तिक व्याख्या इस प्रकार दी थी कि जहां पांच व्रत, पांच समिति और तीन गुप्ति ये तेरह नियम पाले जाते हैं-वह तेरापंथ है। श्वेताम्बर परंपरा के इस सम्प्रदाय का स्थानकवासो सम्प्रदायों से मुख्यविवाद दया-दान के प्रश्न को लेकर है। इस परंपरा की मान्यता थी कि जीवों के रक्षण के प्रयत्न में कहीं न कहीं रागात्मकता का भाव होता है और राग-भाव चाहे किसी भी रूप में हो वह हेय है, उपादेय नहीं। दूसरे दया-दान अर्थात् जीवों के रक्षण अथवा उन्हें सुख पहुँचाने के प्रयत्न में भी कहीं न कहीं हिंसा अवश्य जुड़ी रहती हैं / अतः जिस प्रवृत्ति में हिंसा 1. मुनि नथमल-भिक्षु विचार दर्शन, भूमिका पृ० 9, प्रकाशन वर्ष 1960 2. भिक्षु जस रसायन : 8 दोहा 3-4; - उद्धृत-भिक्षु विचार दर्शन, भूमिका पृ० 15 3. जय अनुशासन-जयाचार्य, श्लोक 625-627, प्रकाशन वर्ष 1981.
SR No.004297
Book TitleJain Dharm ke Sampraday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1994
Total Pages258
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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