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________________ 55 : चतुःशरण प्रकीर्णक (54) मन, वचन, काया तथा कृत, कारित और अनुमोदना पूर्वक धर्म विरुद्ध जो अशुद्ध आचरण मैंने किया है, उन सब पापों की मैं गर्दा (निन्दा) करता हूँ। ( सुकृत अनुमोदना ) (55-58) जो स्पष्टतः दुष्कृत्यों की गर्दा करके कृत दुष्कृत्यों को दलित कर देता है वह सुकृतों के अनुराग से समुन्नत होकर पुलक- पुण्य के अंकुर को इस प्रकार कहता है कि अरहंतो के अरहंतत्व, सिद्धों के सिद्धत्व, आचार्यों के आचार्यत्व, उपाध्यायों के उपाध्यायत्व, साधुओं के साधुत्व, श्रावकजनों के देश-विरतित्व और सम्यकदृष्टियों के सम्यक्त्व, इन सबका मैं अनुमोदन करता हूँ अथवा वीतराग के वचनानुसार जो कुछ भी सुकृत है उनकी सर्व समय में त्रिविध रूप से अर्थात् मन, वचन एवं काया से मैं अनुमोदना करता हूँ। (चतुःशरण गमनादि का फल ) (59) निरन्तर शुभ परिणामों से युक्त जीव इन चार शरणों को ग्रहण करता हुआ पुण्य प्रकृतियों का बन्ध करता है और पूर्व में बांधी हुई अशुभ प्रकृतियों को शुभ अनुबंध वाली बनाता है। .
SR No.004296
Book TitleChausaran Painnayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuresh Sisodiya, Manmal Kudal
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1999
Total Pages74
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_chatusharan
File Size6 MB
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